ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है/ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है। शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है। मतले के दोनों मिस्रों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है। रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है।
गुरुवार, 15 दिसंबर 2016
रविवार, 4 दिसंबर 2016
गुरुवार, 20 अक्टूबर 2016
सोमवार, 17 अक्टूबर 2016
शनिवार, 24 सितंबर 2016
शुक्रवार, 22 जुलाई 2016
रविवार, 10 जुलाई 2016
रविवार, 8 मई 2016
बुधवार, 20 अप्रैल 2016
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2016
शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016
बुधवार, 3 फ़रवरी 2016
गीत
बात जरा पुरानी है दर्द दिल में गहरा है
आज मेरी आखों में फिर उसी का चेहरा है
1
खुद से ज्यादा चाहा जिसको. वो कभी मिलता नहीं ,
आशाओं का सूरज आखों से ढलता नही
कैसे दिल को समझाऊ . ये तो गूगा बहरा है
आज मेरी आखों में .......
2
रूठ रूठ कर मानना . मीत के वो चार दिन
याद आते है बहुत प्रीत के वो चार दिन
ख़्वाब अतीत में जाकर उनकी गली में ठहरा है
आज मेरी आखों में ...............
बात जरा पुरानी है दर्द दिल में गहरा है
आज मेरी आखों में फिर उसी का चेहरा है
1
खुद से ज्यादा चाहा जिसको. वो कभी मिलता नहीं ,
आशाओं का सूरज आखों से ढलता नही
कैसे दिल को समझाऊ . ये तो गूगा बहरा है
आज मेरी आखों में .......
2
रूठ रूठ कर मानना . मीत के वो चार दिन
याद आते है बहुत प्रीत के वो चार दिन
ख़्वाब अतीत में जाकर उनकी गली में ठहरा है
आज मेरी आखों में ...............
गीत
मुश्किलों में राहें बनाते चलो
ज़िन्दगी भी गीत है गाते चलो
1
अंगार पर भी शबनमी बोछार कीजिये
काटों से भी फोलों के लिएप्यार कीजिये
अंधेरों में दीप जलाते चलो . जिन्दगी भी गीत ......
2
कोई बाजियां हर कर जीत कर रहा
नीले गगन की छाँव में प्रीत कर रहा
रोम रोम मीत पर लुटते चलो . जिन्दगी भी गीत ........
मुस्किलो में राहें बनाते चलो
जिन्दगी भी गीत है गाते चलो
मुश्किलों में राहें बनाते चलो
ज़िन्दगी भी गीत है गाते चलो
1
अंगार पर भी शबनमी बोछार कीजिये
काटों से भी फोलों के लिएप्यार कीजिये
अंधेरों में दीप जलाते चलो . जिन्दगी भी गीत ......
2
कोई बाजियां हर कर जीत कर रहा
नीले गगन की छाँव में प्रीत कर रहा
रोम रोम मीत पर लुटते चलो . जिन्दगी भी गीत ........
मुस्किलो में राहें बनाते चलो
जिन्दगी भी गीत है गाते चलो
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016
मंगलवार, 26 जनवरी 2016
शेर
गतिमान की गति को ठहर में ढूँढ रहा है
शुखन वो जिन्दगी जहर में ढूँढ रहा है
और जो वर्षो पहले हम छोड़ आये थे
कोई आज हमे उस शहर में ढून्ढ रहा है
एक रास्ता मुझे अलहदा मिल गया
और हमनवा भी सबसे जुदा मिल गया
मै खुशियाँ मागने कहीं जाऊं तो क्यों
मेरे गम में मुझे मेरा खुदा मिला गया
संग होने का अहसास दे दो
इन हाथों में तुम हाथ ..दे दो
हर मंजिल कदम घूमेगी हमारे
दो पल अगर तुम साथ दे दो
पतंग तुम ख्वाबो की उड़ाते क्यों नही
पड़ाई में लिख लिख कर दोहराते क्यों नही
सुना है बुलंदियां छू रहा है इन्सान
कुछ तुम भी एसा कर दिखाते क्यों नही
सिर्फ दूल्हा दुल्हन थे न कोई बारात आईथी
वर्षो पहले किसी सावन में वो रत आई थी
अब जब भी मेरे चहरे पर बारह बजे से हो
समझ लेना उस पगली की यद् आई थी
गतिमान की गति को ठहर में ढूँढ रहा है
शुखन वो जिन्दगी जहर में ढूँढ रहा है
और जो वर्षो पहले हम छोड़ आये थे
कोई आज हमे उस शहर में ढून्ढ रहा है
एक रास्ता मुझे अलहदा मिल गया
और हमनवा भी सबसे जुदा मिल गया
मै खुशियाँ मागने कहीं जाऊं तो क्यों
मेरे गम में मुझे मेरा खुदा मिला गया
संग होने का अहसास दे दो
इन हाथों में तुम हाथ ..दे दो
हर मंजिल कदम घूमेगी हमारे
दो पल अगर तुम साथ दे दो
पतंग तुम ख्वाबो की उड़ाते क्यों नही
पड़ाई में लिख लिख कर दोहराते क्यों नही
सुना है बुलंदियां छू रहा है इन्सान
कुछ तुम भी एसा कर दिखाते क्यों नही
सिर्फ दूल्हा दुल्हन थे न कोई बारात आईथी
वर्षो पहले किसी सावन में वो रत आई थी
अब जब भी मेरे चहरे पर बारह बजे से हो
समझ लेना उस पगली की यद् आई थी
सोमवार, 25 जनवरी 2016
शायरी
आखों में अश्को को भरा रहने दो
याद उनकी दिल में जरा रहने दोथा
अब दुआ दया दावा ना करो यारो
मुहब्बत का जख्म है हरा रहने दो
बातो में ही क्या उसके वादों में भी दम
वो मीनारें ना गिरी जिनकी बुनियादों में दम था
इस जिन्दगी की रेश में दोड़े हम सब
मंजिले उन्हें मिली जिनकें इरादों में दम था
अब बाजरे हुश्न में फनकार वो आता नही
जो इस दिल पे दावा करे दावेदार वो आता नही
आज भी जब कभी उन्हें ख्वाबों में देख लेता हूँ
कसम से कई महीनों तक करार आता नही
जमीं ये फट गयी होती अगन भी हिल गया होता
भले बरसात ना होती मगर गुल खिल गया होता
लहू से इस धरा पर प्रेम का इतहास लिखता मै
मुझे मुझसा कहीं कोई गर जो मिल गया होता
( वैभव बेखबर)
आखों में अश्को को भरा रहने दो
याद उनकी दिल में जरा रहने दोथा
अब दुआ दया दावा ना करो यारो
मुहब्बत का जख्म है हरा रहने दो
बातो में ही क्या उसके वादों में भी दम
वो मीनारें ना गिरी जिनकी बुनियादों में दम था
इस जिन्दगी की रेश में दोड़े हम सब
मंजिले उन्हें मिली जिनकें इरादों में दम था
अब बाजरे हुश्न में फनकार वो आता नही
जो इस दिल पे दावा करे दावेदार वो आता नही
आज भी जब कभी उन्हें ख्वाबों में देख लेता हूँ
कसम से कई महीनों तक करार आता नही
जमीं ये फट गयी होती अगन भी हिल गया होता
भले बरसात ना होती मगर गुल खिल गया होता
लहू से इस धरा पर प्रेम का इतहास लिखता मै
मुझे मुझसा कहीं कोई गर जो मिल गया होता
( वैभव बेखबर)
गीत
खोल दो जुल्फे घनेरी धुप में तन जल रहा
पास बैठो तो बताऊँ रूप कितना छल रहा
इक नई मिठाश है दर्द का अहशास है
पास ना होकर भी तू आज दिल के पास है
है नही कोई सहारा प्रिय हाथ में तुम हाथ दो
जिन्दगी के इस सफ़र साँस बनकर साथ दो
प्रीत की पुरवाइयों में चाँद देखोढल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..............
जाने कितने बिष पी डाले है पीयूष की प्याश में
बंजारा दीवाना होगया हूँ शिर्फ़ तेरी तलाश में
आशुओं की थाह देखो दरिया समंदर हो गया
दिल की बजी हार कर मै सिकंदर हो गया
यादों की अग्नाइयों में ख्वाब कोई पल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..........
नीले अम्बर की तरह खामोशियाँ खामोश है
दिल को होश हो तो कैसे जब धड़कने बेहोश है
यादों में कभी ख्वाबों में सिर्फ तुम्हे पुकारा है
प्रिय तुम चले आओ इस दिल ने तुम्हे पुकारा है
रूठ कर जाना तुम्हारा हमें आज भी खल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी .........
वैभव कटियार
खोल दो जुल्फे घनेरी धुप में तन जल रहा
पास बैठो तो बताऊँ रूप कितना छल रहा
इक नई मिठाश है दर्द का अहशास है
पास ना होकर भी तू आज दिल के पास है
है नही कोई सहारा प्रिय हाथ में तुम हाथ दो
जिन्दगी के इस सफ़र साँस बनकर साथ दो
प्रीत की पुरवाइयों में चाँद देखोढल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..............
जाने कितने बिष पी डाले है पीयूष की प्याश में
बंजारा दीवाना होगया हूँ शिर्फ़ तेरी तलाश में
आशुओं की थाह देखो दरिया समंदर हो गया
दिल की बजी हार कर मै सिकंदर हो गया
यादों की अग्नाइयों में ख्वाब कोई पल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..........
नीले अम्बर की तरह खामोशियाँ खामोश है
दिल को होश हो तो कैसे जब धड़कने बेहोश है
यादों में कभी ख्वाबों में सिर्फ तुम्हे पुकारा है
प्रिय तुम चले आओ इस दिल ने तुम्हे पुकारा है
रूठ कर जाना तुम्हारा हमें आज भी खल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी .........
वैभव कटियार
गीत
सब कहेते है दीवाना मुझको तो दीवाना कहने दे
बस पलकों में छिप जाने दे तू अपने दिल में रहने दे
मेर मन अभिलाषा है तू जीवन की परिभाषा है
तू समझे या मै समझूँ नयनों की ऐसी भाषा है
अधरों को चुप रहने दे अब आखोंआखों में कहने दे
बस पलकों में ...............
बीते दिन वो बीती रातें सावन की रिमझिम बरशाते
हर छन याद किया करता हूँ तेरी मीठी मीठी बाते
तेरी यादों में डूबा हूँ अब यादों में ही बहाने दे
बस पलकों में छिप ...................
सब कहेते है दीवाना मुझको तो दीवाना कहने दे
बस पलकों में छिप जाने दे तू अपने दिल में रहने दे
मेर मन अभिलाषा है तू जीवन की परिभाषा है
तू समझे या मै समझूँ नयनों की ऐसी भाषा है
अधरों को चुप रहने दे अब आखोंआखों में कहने दे
बस पलकों में ...............
बीते दिन वो बीती रातें सावन की रिमझिम बरशाते
हर छन याद किया करता हूँ तेरी मीठी मीठी बाते
तेरी यादों में डूबा हूँ अब यादों में ही बहाने दे
बस पलकों में छिप ...................
शेर
तुम्हारा सर झुकाकर नजर मिलाना फिर ,मुस्कराना ठीक नही
अगर मै बन गया मजनूं तो तुम्हे लैला बना लूगा
यहाँ मुहब्बत और उसके तौर तरीके बदल चुके है
या रब फिर क्यों तूने मुझे मजनू बना कर भेजा
ये अँधेरा किसी को भाता नही
और रोशनी में नीद कभी आती नही
माँ बाप के अलावा किसी को अपनी जिन्दगी में इतना श्पेश न दो
की उसकी जुदाई तुम्हार्फी जिन्दगी में खलल पैदा करे
तुम्हारा सर झुकाकर नजर मिलाना फिर ,मुस्कराना ठीक नही
अगर मै बन गया मजनूं तो तुम्हे लैला बना लूगा
यहाँ मुहब्बत और उसके तौर तरीके बदल चुके है
या रब फिर क्यों तूने मुझे मजनू बना कर भेजा
ये अँधेरा किसी को भाता नही
और रोशनी में नीद कभी आती नही
माँ बाप के अलावा किसी को अपनी जिन्दगी में इतना श्पेश न दो
की उसकी जुदाई तुम्हार्फी जिन्दगी में खलल पैदा करे
जिसे पाने की चा ह में हमने उम्र गुजार दी
उसे खोने का गम कोई और क्या जाने
गर कम नहीं होगा बड़ ही तो जायेगा
इक बार फिर लौट आओ प्रिय दर्द दिल में वर्षो से ठहरा है
जब तुम पास आये तो मरने का डर चला गया
जब तुम दूर गये तो जीने का शऊर आ गया
जमाना जान गया की कुछ परियासं उतारी है जमी पर
और एक हम थे जो तुझमें ही खोया रहे
उसे खोने का गम कोई और क्या जाने
गर कम नहीं होगा बड़ ही तो जायेगा
इक बार फिर लौट आओ प्रिय दर्द दिल में वर्षो से ठहरा है
जब तुम पास आये तो मरने का डर चला गया
जब तुम दूर गये तो जीने का शऊर आ गया
जमाना जान गया की कुछ परियासं उतारी है जमी पर
और एक हम थे जो तुझमें ही खोया रहे
शेर
मुहब्बत में बर्बाद होने की हुई कुछ ऎसी
फकीरी को ही अपनी मंजिल बना बैठा हूँ मै
दौर था मुहब्बत का कितने हँसी जज्बात थे
इक तरफ थी जिन्दगी इक तरफ आप थे
ना मुमकिन सी है ये बात जरा सी
की इक दिन तुम्हे भूल जायेगें
टकरा कर बिखर जाने की आदत हो गयी
अब लहरों को साहिल से डरना क्या
उम्मीदों के सहारे इस मुकाम तक आ गये
जहाँ मंजिल सामने है पर रास्ता कोइ नही
वो मेरे करीब आना नहीं चाहता
और ये भी चाहयता है मै दूर ना जाऊ
मुहब्बत में बर्बाद होने की हुई कुछ ऎसी
फकीरी को ही अपनी मंजिल बना बैठा हूँ मै
दौर था मुहब्बत का कितने हँसी जज्बात थे
इक तरफ थी जिन्दगी इक तरफ आप थे
ना मुमकिन सी है ये बात जरा सी
की इक दिन तुम्हे भूल जायेगें
टकरा कर बिखर जाने की आदत हो गयी
अब लहरों को साहिल से डरना क्या
उम्मीदों के सहारे इस मुकाम तक आ गये
जहाँ मंजिल सामने है पर रास्ता कोइ नही
वो मेरे करीब आना नहीं चाहता
और ये भी चाहयता है मै दूर ना जाऊ
शेर
पड़ लता हूँ चेहरों को किताबों की तरह
हमे उनके इश्क ने इतना काबिल बनमा दिया
शीश महलो में बेनकाब न जाना कभी
कुछ आईने यु ही चटक जायगें
चराग जलाये थे ये समझ कर की रोशनी होगी
पर कितने पतंगे जलेगें ये कभी सोचा ना था
वर्षो पुराने जख्म उभर आये
एक उसके हेल दिल पूछ लेने से
वो पलके झुककर शिकार करते है
निगाहे उठेगी तो क्या होगा
ये दुनियादारी और कुछ तजुर्बे बता गयी
ये गरीबी हमे क्या क्या ना सिखा गयी
गर्दिश में महकदे जा पहुचा था एक बार
मुझे दो चार वर्ष शराबी कहा लोगो ने
पड़ लता हूँ चेहरों को किताबों की तरह
हमे उनके इश्क ने इतना काबिल बनमा दिया
शीश महलो में बेनकाब न जाना कभी
कुछ आईने यु ही चटक जायगें
चराग जलाये थे ये समझ कर की रोशनी होगी
पर कितने पतंगे जलेगें ये कभी सोचा ना था
वर्षो पुराने जख्म उभर आये
एक उसके हेल दिल पूछ लेने से
वो पलके झुककर शिकार करते है
निगाहे उठेगी तो क्या होगा
ये दुनियादारी और कुछ तजुर्बे बता गयी
ये गरीबी हमे क्या क्या ना सिखा गयी
गर्दिश में महकदे जा पहुचा था एक बार
मुझे दो चार वर्ष शराबी कहा लोगो ने
गजलें
तुम्हे सोचू तो जी घबराता है
तुन्हें देखू तो चैन आता है
है यही खाशियत आदमी की
वेव्फओं पर वफा लुटता है
किस किस ने ना हमको आवाज दी
पर ये दिल तुम्हे ही बुलाता है
2
झूठा उसका दिलशा निकला
कतरा कतरा प्याषा निकला
सूरज से उलझने की चाह थी जिसे
चिराग वही बुझा सा निकला
ऐसा मुहब्बत में हुआ पहली बार
ये दर्द -ए दिल भी दवा सा निकला
तुम्हे सोचू तो जी घबराता है
तुन्हें देखू तो चैन आता है
है यही खाशियत आदमी की
वेव्फओं पर वफा लुटता है
किस किस ने ना हमको आवाज दी
पर ये दिल तुम्हे ही बुलाता है
2
झूठा उसका दिलशा निकला
कतरा कतरा प्याषा निकला
सूरज से उलझने की चाह थी जिसे
चिराग वही बुझा सा निकला
ऐसा मुहब्बत में हुआ पहली बार
ये दर्द -ए दिल भी दवा सा निकला
गजलें
1
अपना जी बहला रहा हूँ
नाम लिखकर मिटा रहा हूँ
आईना अपने सामने रखकर
तुझको उससे हटा रहा हूँ
नाज जिसके बहुत उठाये
अब गम भी उसके उठा रहा हूँ
2
बस ऐसे ही गुजरा करते है
तुम्हे छुप छुप निहारा करते है
लड़ने की चाहत इतनी है
जीती बाजी हरा करते है
आदत ही नही है उन्हे लोटने की
हम फिर भी पुकारा करते है
बदनाम करने के लिए ही सही
वो जिक्र तो हमारा करते करते है
1
अपना जी बहला रहा हूँ
नाम लिखकर मिटा रहा हूँ
आईना अपने सामने रखकर
तुझको उससे हटा रहा हूँ
नाज जिसके बहुत उठाये
अब गम भी उसके उठा रहा हूँ
2
बस ऐसे ही गुजरा करते है
तुम्हे छुप छुप निहारा करते है
लड़ने की चाहत इतनी है
जीती बाजी हरा करते है
आदत ही नही है उन्हे लोटने की
हम फिर भी पुकारा करते है
बदनाम करने के लिए ही सही
वो जिक्र तो हमारा करते करते है
ग़जल
एस दिल में उनका घर हो गया
मुहब्बत का ऐसा असर हो गया
कल ही देखा था उसको मैंने
आज दीवाना ये शहर हो गया /
हवा का रुख बदलने लगा है
वो पौधा अब शजर हो गया
कोई बा -वफाई उसमे न थी
फिर भी जुदाई का डर हो गया
२
गर गर्दिश में अपनी जां देखूं
तो ख्वाब हशी मई कहाँ देखू
वहां वो खोये है मेरे खयालों में
मै ख्वाबो में जिसको यहाँ देखू
मंजिल करीब है ऐसा लगता है
अब कदम कदम इम्तिहाँ देखू
आ ही जाती है याद ग़ाव की
जब गुजरता हुआ कारवां देखू
एस दिल में उनका घर हो गया
मुहब्बत का ऐसा असर हो गया
कल ही देखा था उसको मैंने
आज दीवाना ये शहर हो गया /
हवा का रुख बदलने लगा है
वो पौधा अब शजर हो गया
कोई बा -वफाई उसमे न थी
फिर भी जुदाई का डर हो गया
२
गर गर्दिश में अपनी जां देखूं
तो ख्वाब हशी मई कहाँ देखू
वहां वो खोये है मेरे खयालों में
मै ख्वाबो में जिसको यहाँ देखू
मंजिल करीब है ऐसा लगता है
अब कदम कदम इम्तिहाँ देखू
आ ही जाती है याद ग़ाव की
जब गुजरता हुआ कारवां देखू
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