शेर
मुहब्बत में बर्बाद होने की हुई कुछ ऎसी
फकीरी को ही अपनी मंजिल बना बैठा हूँ मै
दौर था मुहब्बत का कितने हँसी जज्बात थे
इक तरफ थी जिन्दगी इक तरफ आप थे
ना मुमकिन सी है ये बात जरा सी
की इक दिन तुम्हे भूल जायेगें
टकरा कर बिखर जाने की आदत हो गयी
अब लहरों को साहिल से डरना क्या
उम्मीदों के सहारे इस मुकाम तक आ गये
जहाँ मंजिल सामने है पर रास्ता कोइ नही
वो मेरे करीब आना नहीं चाहता
और ये भी चाहयता है मै दूर ना जाऊ
मुहब्बत में बर्बाद होने की हुई कुछ ऎसी
फकीरी को ही अपनी मंजिल बना बैठा हूँ मै
दौर था मुहब्बत का कितने हँसी जज्बात थे
इक तरफ थी जिन्दगी इक तरफ आप थे
ना मुमकिन सी है ये बात जरा सी
की इक दिन तुम्हे भूल जायेगें
टकरा कर बिखर जाने की आदत हो गयी
अब लहरों को साहिल से डरना क्या
उम्मीदों के सहारे इस मुकाम तक आ गये
जहाँ मंजिल सामने है पर रास्ता कोइ नही
वो मेरे करीब आना नहीं चाहता
और ये भी चाहयता है मै दूर ना जाऊ
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