शायरी
आखों में अश्को को भरा रहने दो
याद उनकी दिल में जरा रहने दोथा
अब दुआ दया दावा ना करो यारो
मुहब्बत का जख्म है हरा रहने दो
बातो में ही क्या उसके वादों में भी दम
वो मीनारें ना गिरी जिनकी बुनियादों में दम था
इस जिन्दगी की रेश में दोड़े हम सब
मंजिले उन्हें मिली जिनकें इरादों में दम था
अब बाजरे हुश्न में फनकार वो आता नही
जो इस दिल पे दावा करे दावेदार वो आता नही
आज भी जब कभी उन्हें ख्वाबों में देख लेता हूँ
कसम से कई महीनों तक करार आता नही
जमीं ये फट गयी होती अगन भी हिल गया होता
भले बरसात ना होती मगर गुल खिल गया होता
लहू से इस धरा पर प्रेम का इतहास लिखता मै
मुझे मुझसा कहीं कोई गर जो मिल गया होता
( वैभव बेखबर)
आखों में अश्को को भरा रहने दो
याद उनकी दिल में जरा रहने दोथा
अब दुआ दया दावा ना करो यारो
मुहब्बत का जख्म है हरा रहने दो
बातो में ही क्या उसके वादों में भी दम
वो मीनारें ना गिरी जिनकी बुनियादों में दम था
इस जिन्दगी की रेश में दोड़े हम सब
मंजिले उन्हें मिली जिनकें इरादों में दम था
अब बाजरे हुश्न में फनकार वो आता नही
जो इस दिल पे दावा करे दावेदार वो आता नही
आज भी जब कभी उन्हें ख्वाबों में देख लेता हूँ
कसम से कई महीनों तक करार आता नही
जमीं ये फट गयी होती अगन भी हिल गया होता
भले बरसात ना होती मगर गुल खिल गया होता
लहू से इस धरा पर प्रेम का इतहास लिखता मै
मुझे मुझसा कहीं कोई गर जो मिल गया होता
( वैभव बेखबर)
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