सोमवार, 25 जनवरी 2016

  शायरी


आखों में अश्को को भरा रहने दो
याद उनकी दिल में जरा रहने दोथा
अब दुआ दया  दावा ना करो यारो
मुहब्बत  का जख्म है हरा रहने दो


बातो में ही क्या उसके वादों में भी दम
वो मीनारें ना गिरी जिनकी बुनियादों में दम था
इस जिन्दगी की रेश में दोड़े  हम सब
मंजिले उन्हें मिली जिनकें इरादों में दम था


अब बाजरे हुश्न में फनकार वो आता नही
जो इस  दिल पे दावा करे  दावेदार वो आता नही
आज भी जब कभी उन्हें ख्वाबों में देख लेता हूँ
कसम से कई महीनों तक करार आता नही

जमीं ये फट गयी होती अगन भी हिल गया होता
भले बरसात ना होती मगर गुल खिल गया होता
लहू से इस धरा पर प्रेम का इतहास लिखता मै
मुझे मुझसा कहीं कोई गर जो मिल गया होता      


  ( वैभव बेखबर)  

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