सोमवार, 25 जनवरी 2016

    गीत



  खोल दो जुल्फे घनेरी   धुप में तन जल रहा
पास बैठो तो बताऊँ   रूप कितना छल रहा


इक नई मिठाश है दर्द का अहशास है
पास ना होकर भी तू आज दिल के पास है
है नही कोई सहारा प्रिय हाथ में तुम हाथ  दो
जिन्दगी के इस सफ़र साँस बनकर साथ दो

प्रीत की पुरवाइयों में चाँद देखोढल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..............


जाने कितने बिष पी डाले है पीयूष की प्याश में
बंजारा दीवाना होगया हूँ शिर्फ़ तेरी तलाश में
आशुओं की थाह देखो दरिया समंदर  हो गया
दिल की बजी हार कर मै सिकंदर  हो गया

यादों की अग्नाइयों में ख्वाब कोई पल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..........

नीले अम्बर की तरह  खामोशियाँ खामोश है
दिल को होश हो तो कैसे जब धड़कने बेहोश है
यादों में कभी ख्वाबों में  सिर्फ तुम्हे पुकारा है
प्रिय तुम चले आओ इस दिल ने तुम्हे पुकारा है

रूठ कर जाना तुम्हारा हमें आज भी खल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी .........




वैभव कटियार

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें