गीत
खोल दो जुल्फे घनेरी धुप में तन जल रहा
पास बैठो तो बताऊँ रूप कितना छल रहा
इक नई मिठाश है दर्द का अहशास है
पास ना होकर भी तू आज दिल के पास है
है नही कोई सहारा प्रिय हाथ में तुम हाथ दो
जिन्दगी के इस सफ़र साँस बनकर साथ दो
प्रीत की पुरवाइयों में चाँद देखोढल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..............
जाने कितने बिष पी डाले है पीयूष की प्याश में
बंजारा दीवाना होगया हूँ शिर्फ़ तेरी तलाश में
आशुओं की थाह देखो दरिया समंदर हो गया
दिल की बजी हार कर मै सिकंदर हो गया
यादों की अग्नाइयों में ख्वाब कोई पल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..........
नीले अम्बर की तरह खामोशियाँ खामोश है
दिल को होश हो तो कैसे जब धड़कने बेहोश है
यादों में कभी ख्वाबों में सिर्फ तुम्हे पुकारा है
प्रिय तुम चले आओ इस दिल ने तुम्हे पुकारा है
रूठ कर जाना तुम्हारा हमें आज भी खल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी .........
वैभव कटियार
खोल दो जुल्फे घनेरी धुप में तन जल रहा
पास बैठो तो बताऊँ रूप कितना छल रहा
इक नई मिठाश है दर्द का अहशास है
पास ना होकर भी तू आज दिल के पास है
है नही कोई सहारा प्रिय हाथ में तुम हाथ दो
जिन्दगी के इस सफ़र साँस बनकर साथ दो
प्रीत की पुरवाइयों में चाँद देखोढल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..............
जाने कितने बिष पी डाले है पीयूष की प्याश में
बंजारा दीवाना होगया हूँ शिर्फ़ तेरी तलाश में
आशुओं की थाह देखो दरिया समंदर हो गया
दिल की बजी हार कर मै सिकंदर हो गया
यादों की अग्नाइयों में ख्वाब कोई पल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी ..........
नीले अम्बर की तरह खामोशियाँ खामोश है
दिल को होश हो तो कैसे जब धड़कने बेहोश है
यादों में कभी ख्वाबों में सिर्फ तुम्हे पुकारा है
प्रिय तुम चले आओ इस दिल ने तुम्हे पुकारा है
रूठ कर जाना तुम्हारा हमें आज भी खल रहा
खोल दो जुल्फे घनेरी .........
वैभव कटियार
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