गजलें
तुम्हे सोचू तो जी घबराता है
तुन्हें देखू तो चैन आता है
है यही खाशियत आदमी की
वेव्फओं पर वफा लुटता है
किस किस ने ना हमको आवाज दी
पर ये दिल तुम्हे ही बुलाता है
2
झूठा उसका दिलशा निकला
कतरा कतरा प्याषा निकला
सूरज से उलझने की चाह थी जिसे
चिराग वही बुझा सा निकला
ऐसा मुहब्बत में हुआ पहली बार
ये दर्द -ए दिल भी दवा सा निकला
तुम्हे सोचू तो जी घबराता है
तुन्हें देखू तो चैन आता है
है यही खाशियत आदमी की
वेव्फओं पर वफा लुटता है
किस किस ने ना हमको आवाज दी
पर ये दिल तुम्हे ही बुलाता है
2
झूठा उसका दिलशा निकला
कतरा कतरा प्याषा निकला
सूरज से उलझने की चाह थी जिसे
चिराग वही बुझा सा निकला
ऐसा मुहब्बत में हुआ पहली बार
ये दर्द -ए दिल भी दवा सा निकला
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें