सोमवार, 13 फ़रवरी 2017

  कवि वैभव बेख़बर


आज    यहाँ   है  कल   उधर   है
पर    खत्म  कहाँ     ये  सफर  है

वो  मंजिल  उतनी  ही  सहज  होगी
कठिन  जितना  जिसका सफर होगा

फुटपात पे ये क्यो  ना सोच पाये हम
घर   के  अंदर  भी  एक  घर  होगा


पाने  खोने   का  गिला   क्या  करें
ये तमाशा तो यहाँ  उम्रभर होगा


 ख्वाब  मे  भी  हमने  सोचा ना था
ये गम  इतना हसीं  हमसफर होगा 

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