कवि वैभव बेखबर
तेरी खुशबू का ऐसा असर हो गया
फलों से लटपत शजर हो गया
एक तस्वीर तेरी लगाई थी दीवार पर
ताजमहल सा हमारा घर हो गया
हो बस एक दूजे मे घुल जाने की चाहत
फिर पानी भी बिकता है दूध के भाव
यूं ही वो तराना भूल ना जाना
तुम हसना हसाना भूल ना जाना
ज़िंदगी दिखती है तुम्हारी आखों में
तुम कहीं नजरे मिलाना भूल ना जाना
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