कवि वैभव बेखबर
ना मौसमों का कोई ठिकाना है
इन परिंदों को भी उड़ जाना है
गर हुनर है पंछी को उड़ने का
सय्याद का भी अनोखा निशाना है
वो देखे ना देखे उसकी मर्जी
आईने को तो उल्फ़त निभाना है
यूं गम ए जुदाई मे ना रह बेखबर
छोड़ सासों को भी एक दिन जाना है
ना मौसमों का कोई ठिकाना है
इन परिंदों को भी उड़ जाना है
गर हुनर है पंछी को उड़ने का
सय्याद का भी अनोखा निशाना है
वो देखे ना देखे उसकी मर्जी
आईने को तो उल्फ़त निभाना है
यूं गम ए जुदाई मे ना रह बेखबर
छोड़ सासों को भी एक दिन जाना है
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