ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है/ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है। शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है। मतले के दोनों मिस्रों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है। रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है।
सोमवार, 27 फ़रवरी 2017
गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017
बुधवार, 22 फ़रवरी 2017
सोमवार, 20 फ़रवरी 2017
बुधवार, 15 फ़रवरी 2017
सोमवार, 13 फ़रवरी 2017
रविवार, 12 फ़रवरी 2017
होशो हवाश दोनों के उड़ जाएंगे
एक दूजे से जिस दिन बिछुड़ जाएंगे
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अश्कों को भी आँखों ने गहना सीख लिया
ये दर्दे दिल जबसे हमने सहना सीख लिया
अब आ ही जाएगा उसमें फूलों का हुनर
जिसने काँटों के बीच रहना सीख लिया
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ज्यादा से ज्यादा एक और हादसा हो जाएगा
पर इस इश्क से बडा और क्या हो जाएगा
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कहाँ उल्फ़त का वो जमाना है
यहाँ तो दाने का भूखा दना है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हम भी सजदे इबादत करते थे सब
कभी वो इश्क़ जब खुदा सा लगता था
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वैसे मरने मे कोई नुकसान नही है
पर यहाँ जीना भी इतना आसान नही है
इस भीड़ का हिस्सा बन के रह जाएगा
यहाँ जिसकी अपनी कोई पहचान नही है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
यहाँ तो दाने का भूखा दना है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हम भी सजदे इबादत करते थे सब
कभी वो इश्क़ जब खुदा सा लगता था
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
वैसे मरने मे कोई नुकसान नही है
पर यहाँ जीना भी इतना आसान नही है
इस भीड़ का हिस्सा बन के रह जाएगा
यहाँ जिसकी अपनी कोई पहचान नही है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि वैभव बेखबर
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जो हिम का मजा महीने मई जून में है
ऐसी ख़्वाहिश ज़िंदगी की सुकून मे है
हर दर्दे दिल को कलम का हुनर नही आता
एक शायर कई सदी से मेरे खून मे है
.............................................................................................
अश्क जाम जहर सब कुछ पीना पड़ता है
तब कहीं जाकर ये जख्मे दिल भरते है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरे हवाले कर के रूह अपनी
दर बदर फिर रहा हूँ जिस्म लिए
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
जो हिम का मजा महीने मई जून में है
ऐसी ख़्वाहिश ज़िंदगी की सुकून मे है
हर दर्दे दिल को कलम का हुनर नही आता
एक शायर कई सदी से मेरे खून मे है
.............................................................................................
अश्क जाम जहर सब कुछ पीना पड़ता है
तब कहीं जाकर ये जख्मे दिल भरते है
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तेरे हवाले कर के रूह अपनी
दर बदर फिर रहा हूँ जिस्म लिए
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फासले तो बहुत है पर दिल ए दरमियाँ नहीं
हम अकेले है आज भी पर तन्हा नही ,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक तमन्ना जो कभी पूरी हो ना सकी
मै तड़पी बहुत मगर कभी रो ना सकी
हम बिछड़े तो रातों का जुल्म हुआ इतना
उन्हे नींद बहुत आई और मै सो ना सकी ,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
हम अकेले है आज भी पर तन्हा नही ,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
एक तमन्ना जो कभी पूरी हो ना सकी
मै तड़पी बहुत मगर कभी रो ना सकी
हम बिछड़े तो रातों का जुल्म हुआ इतना
उन्हे नींद बहुत आई और मै सो ना सकी ,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कवि वैभव बेखबर
तेरी खुशबू का ऐसा असर हो गया
फलों से लटपत शजर हो गया
एक तस्वीर तेरी लगाई थी दीवार पर
ताजमहल सा हमारा घर हो गया
हो बस एक दूजे मे घुल जाने की चाहत
फिर पानी भी बिकता है दूध के भाव
यूं ही वो तराना भूल ना जाना
तुम हसना हसाना भूल ना जाना
ज़िंदगी दिखती है तुम्हारी आखों में
तुम कहीं नजरे मिलाना भूल ना जाना
शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2017
बुधवार, 8 फ़रवरी 2017
सदस्यता लें
संदेश (Atom)