शनिवार, 18 अप्रैल 2020

फ़ितूर (ग़ज़ल संग्रह ) 111 ...वैभव बेखबर ,vaibhav KATIYAR KANPUR

1

ज़ुल्म कब तक सहेगा तुम्हारा कोई
फोड़ देगा किसी दिन, गुबारा कोई,

एक हद तक, थमेगा ,ये पानी यहाँ
फ़िर बहेगी ,बग़ावत कि धारा कोई,

मज़हबी नफ़रतें मुल्क़ खा जाएगीं
जंग होगी अग़र अब दुबारा कोई,

अब सफ़ीना, हुनर का चलेगा यहाँ
ढूँढ़िये आप जाकर किनारा कोई,

लोग खंज़र उठाने लगे बेख़बर
तुमने छोड़ा नहीं , और चारा कोई।



2



देशभक्ति का प्रमाण मांगे, ये सरकार कौन है
मुल्क़ की माटी जानती है ,कि ग़द्दार कौन है,

क्यों मज़हब से ,करते हो पहचान हमारी
जंग-ए-इतिहास, गवाह है, वफ़ादार कौन है,

हम ज़ाहिल से पत्थर हैं, ये तो जानते हैं सब
छिपकर फूलों में ,बैठे हैं ,वो खार कौन है,

पूँछों वसुधैवकुटुम्बकम की बात करने वालों से
जातिवाद, भेदभाव का ज़िम्मेदार कौन है,

तुम्हारी अदालत का ,हर फैसला मंजूर किया
वो परवरदिगार जानता है ,गुनहगार कौन है,

दौड़े जा रहे हैं, सब दीवाने किसके दीद को
आप तो इस पार हैं, फिर उस पार कौन है,

भीड़ पर मत जाओ, अपने ज़हन से सोचों
कि पतवार कौन है यहाँ, मझधार कौन है।



3


आज फ़िर , राह में, हादसा हो गया
एक पत्ता , शज़र से, जुदा हो गया,

चाहने वालों ने हमको चाहा बहुत
प्यार जिससे किया, बे-वफ़ा हो गया,

वक़्त के हाँथ, का खेल है ज़िन्दगी
कल तलक़,जो मिरा था, तिरा हो गया,

पास जाते रहे, दिन-ब-दिन ,रोज़ हम
इसलिए दरमियाँ फ़ासला हो गया,

देखता ही नहीं अपनी सूरत कभी
आदमी किस लिए ,आइना हो गया,

सोँचता मैं रहा, रोज़ दीवार को
जब क़दम, चल पड़े, रास्ता हो गया।



4


साथ आपका अगर मिल जाता
कंठ को , मेरे स्वर मिल जाता,

आपकी गोद भी सूनी ना रहती
एक लावारिस को, घर मिल जाता,

तुम भी उड़ते, ये अम्बर सारा
यदि मेरे सपनों को,पर मिल जाता,

ये किस्मत,कैसे होती, आपके जैसी
माना मेहनत कर, हुनर मिल जाता,

ना मक़ाम मिला, मेरे पावों को
जो ख्वाबों में, अक्सर मिल जाता।



5


अब हर समुदाय की ,यही लड़ाई है
कि मैं कॉंग्रेसी और तू भाजपाई है,

ये जो हिन्दू, मुस्लिम ,सिख्ख ,ईसाई है
आपसी भाई नहीं, मज़हबी कसाई है,

सच मज़बूर है, दो निवालों के लिए
आजकल झूठों की, मोटी कमाई है,

सभ्यता में,मानवता का,क़त्ल करकर के
सियासत ने कर, डाली गहरी खाई है,

यहां अमीरों के ,ब्रेन में, कैंसर है बेख़बर
और गरीबों के पांव फ़टी बिमाई है।



6


हम नहीं चाँद पर कोई घर चाहते हैं
बस उन्हें देखना, इक नज़र चाहते हैं,

ज़ुस्तज़ू अब तुम्हारी, हमें इस कदर है
ज़्यों मुसाफ़िर नये, राहबर चाहते हैं,

है तमन्ना यही , बे-वफ़ाई करो तुम
प्यार का उम्रभर हम, असर चाहते हैं,

छोड़ आए ,जहां को उन्हीं के लिए हम
और वो हैं कि सारा शहर चाहते हैं,

थाम कर,हाँथ जिनको,सिखाया थ चलना
काट लेना वही मेरा सर चाहते हैं,

बेवफ़ा हो गए जब नदी के किनारे
अब सफ़ीने हमारे भँवर चाहते हैं,

झूठ से बैर उनको ज़रा सा नहीं है
कल तलक जो उधर था, इधर चाहते हैं।

7


बढ़ाना पांव मुश्किल है ,खड़ा तूफ़ान है यारों
वफ़ा की राह पर चलना, कहाँ आसान है यारों,

वतन को लूटने का एक धन्धा है सियासत अब
तमाशा देख कर ,इनका, ख़ुदा हैरान है यारों,

सभी के घर जलेंगे,जब लगेगी आग गुलशन में
हवा के हाँथ में किसने दिया लोबान है यारों,

ये इंटरनेट के ज़रिए, तअल्लुक सब निभाते हैं
पड़ोसी ही पड़ोसी से , मग़र अनजान है यारों

हुए सब मतलबी, रिश्ते , ज़माना है ,फ़रेबी अब
मशीनी दौर में मिलता, नहीं इन्सान है यारों,


8


धन अमीरों को सारा लुटाते रहे
तुम गरीबों को अक्सर सताते रहे,

लोग जलते रहे, भूख की आग में
आप पानी के , किस्से सुनाते रहे,

की सियासत बहुत, धर्म के नाम पर
बस्तियाँ बे-वज़ह तुम जलाते रहे,

गिर गई,स्थति आर्थिक,वतन की बहुत
आप डॉलर का गुणगान गाते रहे,

लोग मरते रहे, रोज़ फुटपाथ पर
क्यों करोड़ो कि, गुम्बद बनाते रहे।

9


हाँथ लेकर हुनर जल-जला कीजिए
दूर मन्ज़िल नहीं हौसला कीजिए,

हो गए ज़िन्दगी में, अँधेरे बहुत
जल सको दीप सा, तो जला कीजिये

बेवज़ह का दिखावा, किया मत करो
कर सको ,तो किसी का,भला कीजिए,

भेद सब, छोड़कर आदमी से यहाँ
आदमी की, तरह ही, मिला कीजिए,

बाग का रोज़ , नुकसान होता बहुत
आँधियों की तरह,मत चला कीजिए,

10


ज़ुर्म की हद कहाँ तक सही जाएगी
बात सच की हमेशा कही जाएगी,

जानती जो नदी, रास्ते का हुनर
खुद-ब-खुद ही समन्दर, चली जायेगी,

इश्क़ आदत में होना, बुरी चीज़ है
और मुझसे ये आदत नहीं जाएगी,

आपसी जंग होती रहेगी यहाँ
मज़हबी गर सियासत करी जाएगी,

भूख से जब कोई, मौत होगी नहीं
मेरि आँखों से तब, यह नमीं जाएगी।


11


हर तरफ़ झूठ की आज पहचान है
बोलना सच कहाँ इतना आसान है,

कुछ क़दम क्या चले,इक ख़ुशी के लिए
दर्द ही दर्द दिल पर, महरबान है

हर नज़र ,ख़्वाब पाले हुए है यहाँ
यह ज़माना, हक़ीक़त से अनजान है

दिल भरोसा किसी का,करे तो कैसे
मतलबी हो गया, आज इन्सान है,

दौलत ख़रीद ले ऐसा मुमकिन नहीं
इतना हल्का कहाँ मेरा ईमान है।



12


ज़माना हम बदलते तो
ज़रा तुम साथ चलते तो,

पकड़कर छोड़ देते बस
नहीं गिरते, सँभलते तो,

दिये कुछ तो नया करते
हवा के साथ जलते तो,

कभी कुछ झूठ ही कहते
नज़र में, ख़्वाब पलते तो,

तुम्हें मन्ज़िल मिली होती
समय के साथ चलते तो,

ग़ज़ल में, वज़्न ना होता
हमारे ग़म पिघलते तो।



13


दीप सा, तन जलाया , बुझाया गया
हम गरीबों , को अक़्सर, सताया गया,

कश्तियाँ मैं बनाता रहा उम्रभर
इसलिये साहिलों पर डुबाया गया,

हमने जिस पर किया था भरोसा बहुत
बोलकर झूठ अक़्सर रिझाया गया,

ज़ुर्म का, वह बराबर गुनहगार था
सिर्फ़ सूली हमें ही, चढ़ाया गया,

आपसी जंग होती रहेगी सदा
यदि नहीं मज़हबों को मिटाया गया।



14



हर तरफ़ ज़ुर्म की एक सौगात होगी
मज़हबों से जहाँ हर, शुरुआत होगी,

बुझ गया,गर यहाँ आदमीयत क सूरज
फ़िर सदी भर, बुरी रात ही रात होगी,

दिन-ब-दिन,हो रहीं, गर्द बन्जर ज़मीने
अब कहाँ, बादलों की, ये बरसात होगी,

गैर मज़हब है, जिससे मुहब्ब्त हुई है
जंग मैदान में ही , मुलाक़ात होगी

फ़र्श से अर्श तक, ज़िन्दगी खिल उठेगी
गर मुहब्ब्त, तुम्हारी ,मिरे साथ होगी।


15


वफ़ाओं का अपनी करम पा रहा हूँ
तुम्हें याद कर के, पिये जा रहा हूँ,

लगाता नहीं है , यहाँ कोई मरहम
दिले-ज़ख़्म, खुद ही, सिये जा रहा हूँ,

क़दम चल पड़े हैं, अदम के सफ़र में
तेरा नाम लेकर, जिये जा रहा हूँ,

इनायत उसी की, उसी का रहम है
मुहब्ब्त के नग़मे ग़ज़ल गा रहा हूँ,

उन्हें याद करके, सदा की तरह फिर
उन्हें भूलने की कसम खा रहा हूँ।

16

सिसकियों में पलीं बेटियां
बोझ समझीं गयीं बेटियां,

भाइ सा प्यार मिलता नहीं
दर्द यह भी सहें बेटियां,

काम करतीं रहें रातदिन
घर से निकलीं कहाँ बेटियां,

अपने मन से किया कुछ अगर
रोज़ टोकीं गयीं बेटियां,

भेद सहतीं हुईं उम्रभर
वेदना में जलीं बेटियां,

तल्खियां तल्खियां तल्खियां
ज़िन्दगी भर सहें बेटियां।


17


हम मिटाते रहे दूरियों को भले
ज़िन्दगी में मुसलसल, बढ़े फ़ासले,

हाँथ हमसे मिलाया नहीं आजतक
और सबको लगाते रहे वो गले,

मैं करूँ किसलिए, इतनि जद्दोजहद
जब सभी फूटने हैं, यहाँ बुलबुले,

फ़न सुख़न का,विरासत में पाया नहीं
दर्द ही ,इस क़दर ज़िन्दगी से मिले

रहबरों नें दिया ,यह सबब बेख़बर
रास्तों में हमें हादसे ही मिले।



18


न मीठा सही ,यार ख़ारा मिलेगा
चलो और थोड़ा किनारा मिलेगा

वही फ़िर बचेगा ख़ुदा के, क़हर से
जिसे नेकियों का सहारा मिलेगा

यकीं मानिए,राह दिल की ,कठिन है
तुम्हें उलफ़्तों में,ख़ासारा मिलेगा

ज़मीं पर तुम्हें खाइयाँ ही मिलेंगीं
बढ़ो आसमाँ तक,सितारा मिलेगा

तुम्हें इस वियावान दिल में हमारे
हसीं सा, न कोई नज़ारा मिलेगा।


19


(1) दर बदर है डगर (6) मयकदे आप के
ज़ीस्त है वो सफ़र, जाम दो,या ज़हर,

(2)आग से, तेज़ अब (7)कुछ हसीं,ख़्वाब,मैं
फैल ती है ख़बर, देखता रात भर,

(3)सभ्यता खो रहे (8) आइना देखना
लोग आकर शहर, बोलती है नज़र,

(4)इश्क़ माना बुरा (9)इश्क़ का ,है सबब
इक दफ़ा, कर मग़र, दिल हुआ,बेख़बर।

(5)वो मिले ना कभी
जो गये छोड़ कर,


20


जीते देखे हारे देखे
मन्ज़र। हमने सारे देखे

सुन लीं,सबकी बातें फिर भी
नख़रे रोज तुम्हारे देखे

कल झील सरीखी आँखों में
हमने चाँद सितारे देखे

जब रातें बीतीं ख्वाबों में
तब तब दिन में। तारे देखे

उसकी ग़लती पर उसके ही
चढ़ते हमने पारे देखे

मुस्काती देखीं लैलाएँ
मजनूँ ग़म के मारे। देखे

सूखी सूखी नदियों में भी
बहते जल के धारे देखे

देखे आदम उज़ले जितने
मन से उतने कारे देखे

बैठे संसद के अन्दर ही
संसद के हत्यारे देखे

देखा मिलना सरहद का भी
घर घर में बटवारे देखे

बलिदानी देखी वीरों की
आज़ादी के नारे देखे

गैरों से भी बदतर निकले
अपने प्यारे न्यारे देखे

तुमनें तो मन्ज़िल देखी बस
पैरों ने अन्गारे देखे।



21



ज़िस्म की जल रही है ज़मीं बेख़बर
ना रही अश्क़ में अब नमीं बेख़बर

रात फ़िर करवटों में ,गुज़रती मिरि
आपकी जब सताती ,कमीं बेख़बर

क़त्ल कर दो मिरा, ख़ौफ़ हमको नहीं
ज़ख़्म देना नहीं, मरहमी बेख़बर

अब रहे हम न हम,क्यों रहे तुम न तुम
आसमाँ भी वही ,है ज़मीं बेख़बर

अब मिटा दीजिए, नफ़रतें मज़हबी
चैन से जी सके, आदमी बेख़बर।

22


सफ़र में, क़दम तुम बढ़ाते रहो
भले आँसुओं से नहाते रहो,

उजालों कि घर में ज़रूरत नहीं
दिया रोज़ दिल में, जलाते रहो,

न दौलत, केइतने दिवाने बनो
मुहब्ब्त भि थोड़ी कमाते रहो,

सुनाते हो सबको, जो बातें नईं
वही बात ख़ुद को, बताते रहो,

ये माना मुहब्ब्त के क़ाबिल नहीं
नज़र तो नज़र से मिलाते रहो,


23


मिलाना नहीं जाम में यार पानी
लगी आग दिल की, बुझाए न पानी

बता दो , उसे याद आये न इतना
बहुत बह चुका है, निगाहों से पानी

लवों की उदासी, नज़र खिल उठेगी
छिड़क दें,अगर वो, वफ़ाओं का पानी

वो चंचल अदाएँ, चिन्गारी सी लड़की
हमें देख कर, हो गयी , पानी-पानी

कभी इक ,कुआँ खोद पाया नहीं वो
चला है, सुखाने ,समन्दर का पानी।



24


कभी ना दिया डूबते को सहारा
जिसे मिल गया है ,नदी का किनारा

बड़े नेक थे दुश्मनों के इरादे
मग़र दोस्तों को हुआ ना गवारा

ज़माना उसे फिर कहाँ रोक पाया
यहां जो , हुनर ने, मुक़द्दर सँवारा

हुआ भीड़ में, गुम गया छोड़कर जो
मिला ना,कभी कोई मुझको दुबारा

उतर आया है वो,निग़ाहों से दिल में
ज़रा देर मैंने उसे क्या निहारा।
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25


जाने किस राह पर चल पड़ा आदमी
दिन-ब-दिन हो रहा है बुरा आदमी

गर दिखे कोई लाचार तो काट ले
हाँथ तलवार लेकर खड़ा आदमी

हैशियत देखकर अब मुलाकात हो
कब यहाँ आदमी से मिला आदमी

बेच ईमान अपना कमाता फिरे
कुछ हुआ,इस तरह भी बड़ा आदमी

मार डाला सताकर उसे बेख़बर
था शहर में वही इक भला आदमी।

26


मैं वादा तो नहीं करता, पुरे अरमान कर दूंगा
जहाँ तक साथ आओगे,सफ़र आसान कर दूंगा

नहीं फ़िर रोक सकतीं, मंज़िले अपना बनाने से
हुनर अपना मुसीबत के, सरे-मैदान कर दूंगा

न दौलत है, न शौहरत है, ज़रा इज्ज़त कमाई है
तुम्हारे चाह में वो भी, यहाँ कुर्बान कर दूंगा।



27


ख़ूब पूजे गये, औ सजाए गये
देवता फिर नदी में ,बहाए गये,

झूठ वालों,पे सबने, यकीं कर लिया
लोग जो नेक थे, आजमाए गये

मन से मैले, कई और थे ,मुल्क़ में
आइने सिर्फ़ हमको ,दिखाए गए

रौशनी का हवाला, मिला इस क़दर
जो दिए जल रहे थे, बुझाए गये

पक न पाया ,कभी पेड़ पूरी तरह
पत्थरों से कई फल गिराए गये

कुछ मिला ही नहीं,नफ़रतों के सिवा
ऐसे मज़हब यहां क्यों, बनाये गए,

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28

हादसों के शहर , हादसा हुआ
इश्क़ की राह में, और क्या हुआ

सोँचते ही रहे हम ,कि क्या हुआ
वक़्त बेवक़्त जब जब ख़फ़ा हुआ

क़ुरबतें बढ़ गईं ,खुद ब खुद कहीं
ख़ुद ब खुद ,ही कहीं फ़ासला हुआ

कोई। पत्थर नहीं ,पीठ पर मग़र
बोझ से आदमी है दबा हुआ

साथ कुछ दिन, रहे हमसफ़र कई
दिल जहाँ ,भर गया, बेवफ़ा हुआ।


29



शिकारी भूल सब जाए निशाना याद रखता है
हुनर जिसको बनाता है, ज़माना याद रखता है

नये किरदार हों ,जिसमे, ऐसी कोई कहानी लिख
यहाँ अब कौन अफ़साना, पुराना याद रखता है

मुझे सब याद हैं,उस इश्क़ के,एहसान और सितम
परिन्दा ,जिस तरह अपना, ठिकाना याद रखता है

ज़रूरत जब बुलाती है, तअल्लुक आते-जाते हैं
नहीं तो कौन किसका, आशियाना याद रखता है


30


आदमी ,आदमी से लड़ाया गया
धर्म, मसला सियासी बनाया गया,

आग की,सिर्फ़ चर्चा दिखायी गयी
घर,गरीबों का,जिसमे जलाया गया,

सच बनाकर, परोसा गया झूठ को
सामने कब,हक़ीक़त को,लाया गया

कोइ निकला गुनहगार, तफ्तीश में
और इल्ज़ाम किस पर,लगाया गया,

वक़्त अपना बिताकर चले वो गये
वक़्त मेरा मुहब्ब्त में जाया गया


31

शोख़ चंचल नई अदाओं का
वक़्त आया यहां कबाओं का,

क़त्ल तो नज़रिये से होते हैं
ज़ुर्म होता नहीं निगाहों का

रब मेहरबान भी ,हुआ उसपर
जो शहं शाह है गुनाहों का

रोज़ लड़ना पड़ा बलाओं से
कब हुआ है असर,दुआओं का,

जो करे, सामना पहाड़ों सा
वो बदलता है रुख़,हवाओं का,

ज़ुर्म ही हो, नहीं ज़रूरी कोई
है सफ़र ,ज़िन्दगी सजाओं का,

मंज़िले आप ढूँढ़िये अपनी
मैं मुसाफ़िर हूँ, गर्द राहों का।

32

बह्र फ़ायलातुन
वज़्न= 2122 2122 2122 2122
कुछ नहीं है ,हाँथ अपने बे-बसी है और क्या
इक सफ़र है मुश्किलों का ज़िन्दगी है और क्या,

हो गए बर्बाद हम तो दोस्ती के नाम पर
हर तरफ़ थी रहज़नी अब रहबरी है और क्या,

जैसे-तैसे कट रही है क्या बतायें हाले-दिल
दूर जबसे तुम हुए हो, बे-खुदी है और क्या,

देख मेरी हरकतें, मत गौर इतना कीजिए
प्यार में बेचैन होना लाज़िमी है और क्या,

कब तलक़ बैठे रहोगे, नूर कुछ पैदा करो
रौशनी की है कमी,ये तीरगी है और क्या।

33


लोग पत्थर चलाने के आदी हुए
धर्म के नाम पर जो फ़सादी हुए,

सच छुपेगा नहीं ये बता दो उन्हें
झूठ जो बोलकर सत्यवादी हुए,

खूबियाँ देख लीं, छोड़ दीं खामियाँ
आपके सब नतीज़े विवादी हुए,

बैठकर हल निकाला नहीं इसलिए
घर के मसले, शहर में मुनादी हुए,

आखिरी फ़ैसला तो करेगा ख़ुदा
बेख़बर किसलिए तुम, ज़िहादी हुए।


34



वो मिला इश्क़ में जो था लिक्खा हुआ
वो किसी का हुआ , मैं किसी का हुआ

वक़्त लग जायेगा, भूलने में तुम्हें
जो बिछड़ हम गये, ये भी अच्छा हुआ

उसकी शादी किसी और से हो गयी
वक़्त अपना मुहब्बत में जाया हुआ

अब तो बिकने लगी है अदालत यहाँ
फ़ैसला इसलिए एक तरफ़ा हुआ

साख़ पर जिसने काटें उगाये सदा
ना कभी उन दरख़्तों से साया हुआ

खोदना ही पड़ा ,प्यास को ,फ़िर कुआँ
जो भी दरिया मिला, गर्द सूखा हुआ।

35

न्याय के कटघरे सिर्फ़ बाज़ार थे
वो रिहा हो गए ,जो गुनहगार थे

तख़्त पाये वही रौशनी का यहाँ
लोग जो तीरगी के , तरफ़दार थे,

आयकर खा गए, देश का लूटकर
ये ग़रीबो के कैसे मददगार थे,

जंग में खून सबका,बहा था यहाँ
इसलिए सब बराबर के हक़दार थे,

दुश्मनों से करें,क्या गिला बेख़बर
पीठ पर दोस्तों के कई वार थे।


36

टूटकर ठोकरों से गिरा आइना
पत्थरों के शहर क्यों गया आइना

बे-वज़ह रूप अच्छा,न कर दे बुरा
गौर से मत कभी देखना आइना

झूठ को झूठ कहता बड़े प्यार से
सच को सच ही सदा बोलता आइना

किसलिए बे-वज़ह रोज तोड़ा गया
दिल नहीं था मेरा काँच का आइना

देखतीं ही रहें उम्रभर रातदिन
गर मिले आँख को आपसा आइना

खूबियाँ भी नज़र,आएंगी खामियां
बेख़बर पास रखना सदा आइना।

37

प्यार तो है मग़र इज़हार नहीं करना
दिल अपना हमें बीमार नहीं करना

इक दहलीज़ ,गर तुम,लांग नहीं सकते
तो दरिया हमें भी पार नहीं करना

इश्क़ किया है जिससे ताउम्र करूंगा
और कहीं निगाहें चार नहीं करना

गर भाये हक़ीक़त तो साथ चलो तुम
मतलब का कभी किरदार नहीं करना।


38

दिन ब दिन बढ़ रही है ज़हालत यहाँ
मत करो ,कौम वाली सियासत यहाँ

आप ईमान अपना नहीं बेचना
रोज़ पाला बदलती हुकूमत यहाँ

दुश्मनी ठीक है,जाति की,वाद की
है मुसीबत में अब आदमीयत यहाँ

बो रहा नफ़रतें कौन, मालुम करो
प्यार की है सभी को ज़रुरत यहाँ

मामला हो कोई , मशविरा लीजिए
मत किया कीजिए अब अदावत यहाँ।

39


ले गयी चैन दिल का नज़र आपकी
हाय क्या कर गयी इक नज़र आपकी

तेज़ है तीर सी ,धार तलवार सी
अब लगे दुश्मनों को नज़र आपकी

डूबते हम नहीं, झील होती अगर
इक समन्दर लिए है , नज़र आपकी

लफ्ज़ तक इश्क़ के हम नहीं जानते
हर ज़बाँ बोलती है, नज़र आपकी

नूर सी तीरगी में चमकती रहे
मोतियों से जड़ी है, नज़र आपकी

रास्ते लड़खड़ाये, कहीं पर क़दम
मयकशी कर रही है, नज़र आपकी।

40

दर्द दिल का मेरे मत बढ़ाया करो
बात जो भी हो सच सच बताया करो

क़ातिलाना बहुत है नज़र आपकी
हर किसी से नज़र मत मिलाया करो

ज़िन्दगी ने सितम भी,कहाँ कम किये
आप मत इस तरह आजमाया करो

रास्तों की मुलाक़ात से, घर कभी
चाय पर दोस्तों को बुलाया करो

थाम ली है क़लम,जिसलिये बेख़बर
शेर उन पर, कभी तो सुनाया करो।

41

न इस पार का है न उस पार का
सफ़र इश्क़ है बीच मझधार का

हुनर तैरने का, नहीं जानता
भरोसा नहीं कोई पतवार का

न कुछ और तो याद ही कीजिए
न होता कोई काम बेकार का

घड़ी भर उन्हें देखने का सबब
नज़र को लगा रोग दीदार का

ख़ताएँ भुलाकर लगा ले गले
नहीं फ़ायदा कोई तक़रार का।

42

आसमाँ भी झुके वक़्त के सामने
चाँद सूरज बुझे वक़्त के सामने,

जंग को, छोड़कर जा रहे हैं सभी
आप क्यों आ गये, वक़्त के सामने,

जब इनायत हुई, लोग राजा हुए
रंक फिर सब हुये, वक़्त के सामने,

सिर्फ़ बर्बादियाँ मत गिना कीजिए
लोग फूले फले, वक़्त के सामने,

सच तो सच,है कभी,जो बदलता नहीं
झूठ कितना छिपे, वक़्त के सामने।


43

ज़िन्दगी के सितम, कुछ ख़ता आपकी
दर्द देती रही हर अदा आपकी,

क्यों ज़माने को हम, बेवज़ह दोष दें
आपसे ना मिली जब रज़ा आपकी,

तोड़ दी हर कसम, हो गये गैर के
माँगता रह गया ,दिल वफ़ा आपकी,

धूप क्या छाँव ,क्या बादलों से गिला
आपका है दिया , है हवा आपकी,

क्यों अदालत गया,मामला इश्क़ का
हमको मंज़ूर थी, हर सजा आपकी,

ख़्वाब आते मुझे, रात भर आपके
नींद से भी उठाती, सबा आपकी,

बे-ख़ुदी , बे-बसी , बे-दिली ज़िन्दगी
इस क़दर है लगी ,बददुआ आपकी।

44




सिसकियों में पलीं बेटियां
बोझ समझीं गयीं बेटियां,

प्यार बेटे सा मिलता नहीं
दर्द सहती रहीं बेटियां,

रातदिन काम करतीं रहीं
घर से निकलीं नहीं बेटियां,

अपने मन से किया कुछ अगर
रोज़ टोकी गयीं बेटियां,

भेद सहती हुईं उम्रभर
वेदना में जलीं बेटियां

45


दर-बदर लाख चाहें दुआ कीजिए
वक़्त ही जब बुरा है तो क्या कीजिए,

रात के बाद होता सवेरा यहाँ
मुश्किलों में ज़रा हौसला कीजिए,

क्रब में धन नहीं साथ ले जाओगे
कर सको तो किसी का भला कीजिए,

कुछ ज़रूरी नहीं आप सूरज बनो
जुगनुओं की तरह ही जला कीजिए,

हर किसी को ये दौलत न मिलती यहाँ
प्यार हो जाये तो इन्तेहा कीजिए

आइना ज़िन्दगी का दिखेगा तुम्हें
गीत ग़ज़लें हमारी पढ़ा कीजिए।

46

लोग अब सियासी हैं राख़ भी उकेरे हैं
बस्तियां जला देंगे, भीड़ में लुटेरे हैं,

मज़हबी ज़हर घोला नफ़रती हवाओं में
सापों का इलाका है, कैद में सपेरे हैं,

चोर, चाटुकारी का, चल रहा ज़माना अब
मंज़िलो कि राहों में, मुश्किलों के डेरे हैं,

चाँद के बहाने वो, ले गए चरागों को
था शहर उजालों का, अब यहाँ अंधेरे हैं।


47

ज़मीं पर ज़रा देर बारिश करें
चलों बादलों से गुज़ारिश करें,

नहीं पास जिनके यहाँ कुछ हुनर
वही लोग ज्यादा नुमाइश करें,

सँभलना ज़मीं पर नहीं जानते
मग़र चाँद की लोग, ख़्वाहिश करें,

नहीं अपने हिस्से बहारों के दिन
इन्हीं पतझरो से अराइश करें,

हुनर कोई पैदा करो बेख़बर
कहाँ तक तुम्हारी सिफारिश करें।


48

आँधियों में, न मैं बिखर जाऊं
मशविरा दे ख़ुदा किधर जाऊं,

कौन ज़ानिब क़दम बढ़ाऊं मैं
चलते चलते जहाँ, ठहर जाऊं,

हर तरफ़ मौत की तबाही है
ज़िन्दगी ढूंढने , किधर जाऊं,

दिन ब दिन ढल रहा बदन मेरा
तू अगर, थाम ले, सँवर जाऊं,

आरज़ू बस यही हमारी है
आपकी रूह में, उतर जाऊं,

छोड़कर दूर तुम नहीं जाना
बिन तेरे,मैं कहीं न मर जाऊं।

49

बे-वज़ह बात मत बढ़ायी जाए
आग , जैसे भी हो बुझायी जाए,

छोड़कर भेदभाव सब साथ रहें
आदमीयत चलो निभायी जाए,

हम सभी के लिये ज़रूरी है बहुत
मज़हबी दूरि अब मिटायी जाए,

साथ मिलकर चलें सभी हम जिसपर
ऐसी इक राह अब बनायी जाए।

50

वो भी लगते यहाँ रौशनी की तरह
जिनका क़िरदार है, तीरगी की तरह

दिल में ठहरा नहीं , दर्द जैसा कोई
पल दो पल ही रुके तुम, ख़ुशी की तरह

प्यास ने खोद डाले समन्दर कई
तुमने चाहा नहीं तिश्नगी की तरह

बच गयी ज़िन्दगी, हादसे में मग़र
ना रही ज़िन्दगी, ज़िन्दगी की तरह

पत्थरों की तरह, क्यों हुआ आदमी
संग होते नहीं , आदमी की तरह।

51

आज नहीं तो कल होगा
यह मसला भी हल होगा

जिसने जैसा बोया है
उसका वैसा फल होगा

धरती पर ही आयेगा
प्यासा जब बादल होगा

ग़ज़लें ज़्यादा सुनता है
दिल उसका घायल होगा

उतनी दूर वो जाएगा
जिसमें जितना बल होगा

रब जाने उन गड्ढों में, कल
जल होगा या थल होगा

52

( कॅरोना वायरस के समय)
समस्या बड़ी है दुआ कीजिए
मदद हो सके तो अता कीजिए

परेशाँ जहाँ है महामारी से
सफ़ाई से अब तो रहा कीजिए

करे आदमी, आदमी की मदद
ग़रीबों पे थोड़ी दया कीजिए

समय है अभी सावधानी रखो
न अब और कोई ख़ता कीजिए

रहो अपने घर में , वतन के लिये
ज़रा फ़र्ज़ अपना अदा कीजिए

53

ज़ख्म दिल का हमारे तो भर जाएगा
ज़ुर्म लेके तू अपना किधर जाएगा,

क्या मिला है तुझे नफरतों से यहाँ
प्यार कर ले ,तो जीवन सँवर जाएगा,

हमने चलना सिखाया है जज़्बात को
ज़िस्म थक जाएगा ,तो ठहर जाएगा,

जो गया ही नहीं पर्वतों तक कभी
सोचता है वो भी चाँद पर जाएगा,

मत निहारा करो, गौर से बेख़बर
प्यार दिल में हमारा ,उतर जाएगा।


54

सिर्फ़ दरिया नहीं ,आग भी चाहिए
रास्ते कुछ मुझे अजनबी चाहिए,

कोई करता हिफाज़त शमा की नहीं
हर किसी को यहाँ रौशनी चाहिए,

पास हैं मयकदे, जाम भी है ज़हर
इन लवों को मग़र तिश्नगी चाहिए,

सिख्ख ,हिन्दू न कोई मुसलमान हो
आदमी को यहाँ आदमी चाहिए,

हर तरफ़ नफ़रतें रोज़ आतीं नज़र
शह्र को प्रेम की, इक गली चाहिए।


55

चैन दिल करार से जीना मुहाल कर डाला
इक तेरी निगाह ने सारा कमाल कर डाला,

क्या सबब जुदाई था, खुद ही ज़बाब दे जाओ
हर किसी ने, शह्र में, मुझसे सवाल कर डाला,

आज फ़िर तबाह होगा दिन मेरा ख्वाबों से
क्यों तेरा सुबह सुबह दिल ने, ख्याल कर डाला।


56


तेज़ इक दम, हवा हो गयी
क्या दियों से, ख़ता हो गयी,

तेल जब भी सियासी , जला
रौशनी लापता हो गयी,

बे-असर हर इबादत हुई
हर दुआ , बददुआ हो गयी

रोक पाये , न पहरे उन्हें
जब दिलों की ,रज़ा हो गयी,

इस तरह कारखाने लगे
सब प्रदूषित ,हवा हो गयी

बे-वफ़ा तुम हुए, बेख़बर
ज़िन्दगी भी ख़फ़ा हो गयी।



57


हो गया राख कुछ , कुछ धुआँ हो गया
दिल मेरा इश्क़ में राएगाँ हो गया,

सब गये छोड़कर दिल में वीरानियाँ
दर्द फिर इसलिए मेज़बाँ हो गया,

ओंठ खामोशियों को बनाये रहे
भाव का आँख से, तरज़ुमाँ हो गया,

ज़िस्म जां और ईमान बिकने लगा
आदमी चलति-फिरती दुकाँ हो गया।



58



तुम्हारे ख़्वाब आते हैं ज़हन चकरा ही जाता है
तुम्हें खोने,कि सोंचू तो जिया घबरा ही जाता है

तुम्हारा रूप करता जो , शराबों से नहीं होता
नज़र से जब नज़र मिलती,नशा तो छा ही जाता है

सँभलना जानता हूँ मैं, जहाँ की हर मसाइल से
तुम्हारा ज़िक्र,क्यों अक्सर, मुझे बहका ही जाता है

अगर मुड़ मुड़ के देखोगे तो पीछे ही रहोगे तुम
सफ़र में बढ़ गया आगे, वो मंज़िल पा ही जाता है

जनम से कौन होता है , धनी फ़नकार धरती पर
बदलता है हुनर जब ओहदे,रूतबा आ ही जाता है


59

हवा आपकी हर शज़र आपका है
गली क्या मुहल्ला, शहर आपका है

सुबह-साँझ हो, या घड़ी रात की हो
यहाँ वक़्त आठों पहर आपका है

नज़र बावली है, नहीं चैन मन को
दिवानों के दिल में,कहर आपका है

क़दम बेवज़ह अब बहकने लगे हैं
नशे में नहीं हम ,असर आपका है

पिला दो कभी, इन लवों को लवों से
अग़र जान लेवा, ज़हर आपका है

ख़बर ही कहाँ थी, हमारी क़लम को
ग़ज़ल गीत में, कुछ हुनर आपका है।

60

नज़र बे-नज़र औ जुबां बे-जुबां है
बड़ी गर्दिशों में, ये सारा जहां है

लिखी है मुकद्दर में खाना-बदोशी
परिन्दों का कोई ठिकाना कहां है

सभी झूठ की पैरवी कर रहे हैं
कहाँ कोई सच का यहां पासबां है



61

दर्द के साथ भी मुस्कराकर जियो
मुश्किलों को गले से लगाकर जियो,

दुश्मनी हल नहीं हैं किसी बात का
मशविरे से समस्या मिटाकर जियो,

भर महीने तो ख़ुद को गिराते हो तुम
बोझ इक दिन किसी का उठाकर जियो,

हाल दिल का न, पूछेगी दौलत कभी
सिर्फ़ पाकर नहीं, कुछ लुटाकर जियो,

बात ईमान की है, यहाँ बेख़बर
जीस्त जितनी जियों, सर उठाकर जियो।

62

पुरानी सड़क पर ज़माने पड़ेंगे
तुम्हें रास्ते ख़ुद बनाने पड़ेंगे

न मंज़िल, न महफ़िल अचानक मिलेगी
कई साल तन्हा बिताने पड़ेंगे

कहाँ काम कोई हुआ इक दफ़ा में
तरीक़े कई आज़माने पड़ेंगे

नहीं कोई हिस्सा तुम्हारा भरेगा
सभी कर्ज़ ख़ुद ही चुकाने पड़ेंगे

बुरे काम का, फल बुरा ही मिलेगा
शज़र नेकियों के लगाने पड़ेंगे।

63


ख़्वाब ने कुछ हसीं ख़यालों ने
चैन लूटा तेरे ज़मालों ने,

इस तरह तीरगी मिटायी है
छीन ली है नज़र उजालों ने,

इल्म वो था नहीं किताबों में
जो दिया है मुझे सवालों ने,

पेट की आग में जला क्या क्या
हाल क्या कर दिया निवालों ने।


64

हाँथ से रेत जैसी फ़िसलती रही
ज़िन्दगी रोज़ गिरती ,संभलती रही

बाँध करने लगे, तय दिशा ,दायरा
पर्वतों से नदी तो निकलती रही,

चैन आया न तन को,सुकूँ मिल सका
याद मन में तुम्हारी मचलती रही,

भूख कैसे जलाती ,उन्हें क्या ख़बर
आग चूल्हों में जिनके ये जलती रही,

मज़हबी जाल में लोग फसते रहे
चाल अपनी सियासत बदलती रही,

65


जलजला तो बहुत है ख़रीदार का
देखना है अभी भाव बाज़ार का,

ग़र मिले बेरुख़ी दोस्तों से सदा
दीजिए फ़िर जरा साथ अग्यार का,

दरमियां बढ़ चुकी थी कई दूरियां
फ़ासला था मग़र एक दीवार का,

बोलना सच सदा,बात कैसी भी हो
तोड़ना मत भरोसा , दिले-यार का,

मशविरे तो कई लोग देकर गये
दर्द समझा भला ,कौन बीमार का,।

66

मुश्किलें तो होगीं पर, ना तुम्हें पुकारेंगे
दिन यहीं गुज़ारा है ,रात भी गुज़ारेंगे,

कब तलक दबाओगे,कब तलक सताओगे
एक दिन हुनर वाले , पंख तो पसारेंगे,

ऊंच-नीच तोड़ो भी,भेदभाव छोड़ो अब
मज़हबी सियासत को,आप कब नकारेंगे

दर्द ही सिखाता है,फ़लसफ़ा मुहब्बत का
ज़िन्दगी लुटाकर हम, ज़िन्दगी सवारेंगे,

हाँथ हम बढाएगें, भूलकर गिले-शिकवे
दोस्त ही बनाकर अब ,दुश्मनी को मारेंगे।

67


गैर तो खंज़र थमाते हैं
पीठ तक अपने ही आते हैं

चाहिए तुमको निभाना अब
फ़र्ज़ जो वालिद निभाते हैं

झाँक ले मेरी निगाहों में
आइने ये दिल दिखाते हैं

प्यास ,दरिया ढूंढ लेती ख़ुद
मयकदे किसको बुलाते हैं

तय अकेले ही सफ़र करते
लोग जो मंज़िल बनाते हैं

68


दियों को आज़माना है जलाना फ़िर बुझाना है
ख़ुदा जाने कि कैसे इन हवाओं को चलाना है,

हुनर अपना परिन्दे भी बख़ूबी जानते होंगे
अग़र क़ातिल शिकारी का बड़ा अच्छा निशाना है,

सही बातें बताओ तुम,सही रस्ता दिखाएं हम
लगी है आग नफ़रत की,केअब इसको बुझाना है,

हुई मुद्त नहीं आया कोई दिल के घराने में
डगर जाती नहीं शायद,जहाँ मेरा ठिकाना है,

हमे चलना नहीं आया, बदलना भी नहीं आया
वही मासूम दिल अपना,वही ज़ालिम ज़माना है।

69

आपके ही मुताबिक़ अता हो गए
अज़नबी हम कभी आशना हो गए

कुछ बता ज़िन्दगी कब मिलेगा सबब
हद से ज़्यादा मेरे इम्तेहां हो गए

सच को पत्थर ,बनाना पड़ेगा तुम्हें
झूठ वाले अग़र आइना हो गए

हम ग़रीबों को लूटा , कहा जानवर
आप दौलत कमाकर ख़ुदा हो गए

बात हिस्से की अब तो करो बेख़बर
कर्ज़ सारे। तुम्हारे अदा हो गए।

70


छोड़कर दिल तोड़कर चल दिये नाशाद कर
रात दिन गुज़रे मेरे , फिर उसे ही याद कर,

भूल हम पाए नहीं ,सिर्फ़ इतना है गिला
उम्रभर चलना पड़ा, बोझ उसका लाद कर,

बे-वफ़ा का नाम दूँ ,क्यों उसे इल्ज़ाम दूँ
हो गया आबाद दिल, इश्क़ में बर्बाद कर।

रौशनी ढूँढती ज़िन्दगी
बन गयी तीरगी ज़िन्दगी,

दिल हुआ दर्द से रु-ब-रु
अज़नबी हो गई ज़िन्दगी

पास आकर चले क्यों गये
रह गई सोचती ज़िन्दगी,

वो रहे बे-वफ़ा उम्रभर
इश्क़ में लुट गई ज़िन्दगी,

बचपना आज भी याद है
थी कभी दिलनशीं ज़िन्दगी,

छोड़ मझधार में बेख़बर
कश्तियां ले गई ज़िन्दगी।

71


किसी नाव से या कि पतवार से
निकालो मुझे आज मझधार से,

रहो साथ मिलकर, यहां प्यार से
नहीं फ़ायदा कोई तक़रार से,

ये आवाज़ अब तो रुकेगी नहीं
ज़ुबां काट सकते हो तलवार से,

सितम ना सहो तुम किसी का यहाँ
मुआफ़ी न मांगो गुनहगार से,

दिया दुश्मनों ने सहारा मुझे
लुटे हैं यहाँ हम, मददगार से,

हिफाज़त करो ख़ुद, इधर बेख़बर
नहीं आएगा कोई उस पार से।

72


संग तो हर तरफ़ से उछाले गए
सारे इल्ज़ाम मुझ पर ही डाले गए,
संग=पत्थर
जाति की,धर्म की, नफ़रतें उग गईं
ऐसे माहौल में लोग ढाले गए,

रोज़ हमको पसीना बहाना पड़ा
पेट में तब कहीं दो निवाले गए,

कौन आया गरीबों से मिलने ख़ुदा
तीरगी की डगर कब उजाले गए,

रास्ता चलने वालों का रोका गया
गिरने वाले यहाँ कब सँभाले गए।

73


पा गया हो जैसे ,हर नूर आदमी
दिन-ब-दिन हो रहा,मगरूर आदमी,

एक -दूजे पे ही इख़्तियार के लिए
रोज़ बुनता नए दस्तूर आदमी,

फ़िर रहा किसलिए हैवानियत लिए
आदमीयत से कोषों दूर आदमी,

देवताओं पे है इल्ज़ाम बेवज़ह
आदमी से हुआ मज़बूर आदमी,

है सताता जहां ,कमज़ोर को यहाँ
बन गया इस क़दर क्यों क्रूर आदमी,

74


धर्म धन्धा हुआ देख पाए नहीं
जाहिलों को कभी रोक पाए नहीं

क्या इबादत में मेरी कमीं थी ख़ुदा
क्यों बचाने मुसीबत में आए नहीं

झूठ वालों ने कब्ज़ा किया हर जगह
साथ देने कभी सच का आए नहीं

लाज़ लुटती रही , बेटीयों की यहाँ
फ़र्ज़ तुमने भी अपने,निभाए नहीं

तेरे होने न होने से, क्या फ़ायदा
ज़ुल्म जब देखकर रोक पाए नहीं

आदमी की फ़रेबी उपज है ख़ुदा
कोई मज़हब तो रब ने बनाए नहीं।

75


चले थे जो मुझे पाने, कभी वो आ नहीं पाए
जिसे चाहा बहुत दिल ने, उसे हम पा नहीं पाए,

कई किरदार उसने तो , मुहब्बत में बदल डाले
उसी किस्से में उलझे हम , मग़र सुलझा नहीं पाए,

कराया पार हमनें है , समन्दर जाने कितनों को
मग़र अपना सफ़ीना हम, किनारे ला नहीं पाए,

क़दम दो-चार चलकर ही,उन्हें तो मिल गयी मंज़िल
सफ़र में उम्र बीती पर, कहीं हम जा नहीं पाए,

क़लम फ़िर थाम ली हमनें,कई अशआर लिख डाले
किसी के शेर सुनकर हम, ज़िगर बहला नहीं पाए।

76


थे अपने जो परचम उठाए हुए
वही लोग पहले पराए हुए,

मिलाने चले थे नज़र से नज़र
गुज़रने लगे सर झुकाए हुए,

भरोषा नहीं अब रहा चाँद का
दिये ही जलाओ, बुझाए हुए,

ज़ुदा फिर रहे, हम कई साल से
दिलों - जान उस पर लुटाए हुए,

सबब हादसों का मिला इस क़दर
सँभलने लगे , चोट खाये हुए।

77

उम्र भर हम तुम्हारे असर में रहे
जान-दिल में कभी तुम नज़र में रहे

गर्द साहिल हमें याद आया बहुत
चन्द लम्हात जब हम भँवर में रहे

दर-बदर की तलब में मुसाफ़िर बना
मंज़िलों के लिए कब , सफ़र में रहे

जान पाए नहीं लोग हमको तो क्या
शेर कुछ तो हमारे ख़बर में रहे

दर्द नें ज़िन्दगी को किया बेख़बर
क्या पता हम कहाँ ,किस दहर में रहे।

78

न ख़्वाहिश है किसी की अब, न ही फ़रयाद करता हूँ
किसी की याद आती ना किसी को याद करता हूँ,

ख़ुशी लगती फ़रेबी अब ज़माने की निगाहों में
फ़साने दर्द के लिखकर दिले - नाशाद करता हूँ,

नज़र के सामने भी हम, नज़र आते नहीं उनको
कहाँ आवाज़ सुन पाएं, जिन्हें मैं साद करता हूँ,

शज़र हमने लगाए हैं , घरौदें भी बनाएं हैं
कफ़स में जो परिन्दे हैं, उन्हें आज़ाद करता हूँ,

सलीका शेर लिखने का अभी आया नहीं हमको
ग़ज़ल की चाह में सारा समय बर्बाद करता हूँ।


79


रफ़्ता-रफ़्ता लोग सब ना-आशना होने लगे
हम जरा क़िरदार से ,क्या आइना होने लगे

इश्क़ भी इक मयकदा है,आग का कुछ प्यास का
सोच लूँ उनको अगर , मुझको नशा होने लगे

बाटता कोई कहाँ , इक दूसरे का दर्द अब
किसलिए ये आदमी सब बे-हया होने लगे

कौन जाने क्या बना मज़बूरियों में आदमी
नेकियों की राह में जब हादसा होने लगे

इश्क़ में क्या कुछ हुआ, कैसे बताएं आपको
चाहते थे और होना , और क्या होने लगे

80

जाने किस बात से खफ़ा हैं
हम अपने आप से ख़फ़ा हैं

रफ़्ता रफ़्ता हुए सब काले
दिन जितने रात से ख़फ़ा हैं,

दुश्मन जीता ,गिला नहीं कुछ
दोस्तों के साथ से ख़फ़ा हैं,

चिन्ता अपनी कहाँ उसे अब
वो मेरे हालात से ख़फ़ा हैं,

जाने वाले का ग़म नहीं है
हम उसकी याद से ख़फ़ा हैं।


81

मुश्किलों के साथ थोड़ा मुस्कराना सीख ले
आँसुओं को आँख में ही ,तू छिपाना सीख ले,

छोड़ दे अफ़सोस उसका, लौटकर ना आएगा
बीत जो लम्हा गया, उसको भुलाना सीख ले,

धार में मझधार में,कुछ भर हुनर पतवार में
साहिलों पर कश्तियों को आजमाना सीख ले,

गुम कहीं हो जाएगा, या भीड़ में खो जाएगा
मंज़िलों के रास्ते भी ख़ुद, बनाना सीख ले,

दुश्मनों के सामने, रणनीति होनी चाहिए
दोस्तों के वार से,ज़ोखिम उठाना सीख ले।


82


नेकियों की तरफ देखता कौन है
हाल मज़बूर का पूछता कौन है,

जान लो मान लेने से पहले ज़रा
आदमी कौन है, देवता कौन है

लोग दौलत के पीछे रहे दौड़ सब
आदमीयत यहाँ खोजता कौन है

फ़ायदा ढूंढते हैं सभी लोग अब
काम अच्छा बुरा सोंचता कौन है

क्यों कहें झूठ को झूठ हम बेख़बर
सच को सच, ही यहाँ बोलता कौन है।

83


हादसे ही सदा ज़िन्दगी से मिले
मशविरे इस क़दर आदमी से मिले

लुट गये इश्क़ में जान-दिल से मग़र
दर्द ही उम्रभर दिलनशीं से मिले

ख़ुद से थे अज़नबी, जान पाए नहीं
बे-ख़ुदी में गए , तब ख़ुदी से मिले

उम्रभर तीरगी में, किया है सफ़र
तब कहीं यार हम रौशनी से मिले

इसलिए भी कभी हम बुरे हो गए
ख़ुश नहीं थे ,मग़र हम ख़ुशी से मिले।


84


कहाँ तक करोगे गिला रौशनी से
चराग़ों को लेकर, लड़ो तीरगी से,

लुटेरों से नाहक ,ज़माना। ख़फ़ा है
हुए ख़ाक हम तो, यहाँ रहबरी से,

ज़ुदा हो गए तुम ,तो आलम है ऐसा
नज़र आइने आ रहे अज़नबी से,

महज़ इक भरम है,ये दौलत,ये शौहरत
मिलो आदमी की तरह , आदमी से,

दियों ने बुझायी कहाँ प्यास उतनी
लगी आग जितनी,यहाँ तिश्ऩगी से,

हुए बे-वफ़ा तुम , हमारी ख़ता थी
शिकायत नहीं अब मुझे ज़िन्दगी से।


85


इल्म ही तोड़ता है फ़रेबी भरम
अपने बच्चों के हाँथों में दे दो क़लम,

ख़ुद को अच्छा जताने से क्या फ़ायदा
सब ख़ुदा को पता हैं तुम्हारे करम,

भूख की आग में, जल रहा आदमी
मत करो धर्म के नाम, ज़ुल्मों-सितम,

झूठ को सच बनाने की ख़ातिर यहाँ
लोग खाने लगे हैं ख़ुदा की कसम,

मूर्ख सबको सियासत बनाती रही
रोज तोड़े बनाये ये दैरो-हरम।



86

ज़रा सा तुम्हें भी पड़ेगा बदलना
अगर चाहते हो सदा साथ चलना,

सफ़र का तज़ुर्बा ,न मंज़िल मिलेगी
नहीं जानता है जो गिरके सँभलना,

मनाने कि कोशिश में रोए बहुत हम
न आया कभी ,पत्थरों को पिघलना,

बहुत नाज़ जिनको हुआ शौहरतों पर
दिखा दो उन्हें साँझ सूरज का ढलना

हवाओं का डर, ख़ौफ़ ना आँधियों का
सिखाया है हमनें ,चराग़ों को जलना।



87

साजिशों के तहत वाक़या होता है
अब अचानक नहीं हादसा होता है,

कैद मिलती किसी दूसरे को अक़्सर
ज़ुर्म वाला कोई दूसरा होता है,

हर किसी को मनाने कि कोशिश में ही
रोज़ कोई न कोई ख़फ़ा होता है,

आपको मिल गया, बात अच्छी है पर
इश्क़ पैदायशी बे-वफ़ा होता है,

हर शुरुआत में ,मुश्किलें मिलतीं कुछ
कोई आसां कहाँ रास्ता होता है।

88



पहलू दूसरा दिखाना पड़ता है
मुददा मज़हबी बनाना पड़ता है

सच को सामने नहीं लाया जाता
आधा झूठ ही बताना पड़ता है,

अच्छा क्या बुरा,सियासत में साहब
झगड़ा आपसी कराना पड़ता है,

कुर्सी ,बोटबैंक के ख़ातिर हमको
धन्धा धर्म का, चलाना पड़ता है।


89


बात इकरार की है ,न इनकार की
टूट सकती है बुनियाद एतबार की,

मोड़ते ख़ुद कहानी ग़लत राह पर
गलतियां खोजते लोग किरदार की,

चार पैसों ने रोका है परदेश में
याद आती मुझे रोज परिवार की,

दर्द में दिल ,हमारा जिया उम्रभर
बन गईं सुर्खियां आपके प्यार की,

धर्म की , जाति की नफ़रतें छोड़ दो
पैरवी मत करो ,अब गुनहगार की।

90


मीठा खारा मौला जाने
बहती धारा मौला जाने,

याद में तेरी कैसे हमनें
वक़्त गुज़ारा मौला जाने,

आवाज़ सुनी तो पांव चले
कौन पुकारा मौला जाने,

हमनें तो उस पर छोड़ दिया था
हाल हमारा मौला जाने,

खेल रहे हम जैसे तैसे
खेल ये सारा मौला जाने।


91


ज़िन्दगी हो न पाई सुहानी मेरी
कट गई हादसों में जवानी मेरी

शाइरी है ग़ज़ल, नज़्म है गीत है
और कुछ भी नहीं ज़िन्दगानी मेरी

कोई दिल को, कथानक मिला ही नहीं
है अभी तक अधूरी कहानी मेरी।

92
हर किसी के साथ करना होशियारी छोड़ दो
बात मेरी मान लो ,यह चाटुकारी छोड़ दो

मुश्किलों में साथ देने , तुम कभी आये नहीं
बे-वज़ह की फ़िक्र करना, अब हमारी छोड़ दो

सीख थोड़ा काम करना, बेच मत ईमान को
चन्द पैसों के लिए ,यह ख़ाकसारी छोड़ दो

द्वार देखों ,घर सँभालो, प्यार दो , परिवार को
तुम ज़माने भर की रखना, जानकारी छोड़ दो

मत करो वादे फ़रेबी , जो रही बन्ज़र ज़मीं
प्यास को पानी नहीं तो, आबशारी छोड़ दो

दुश्मनों की दुश्मनी पर, नाज़ सब करने लगे
ग़र निभा सकते नहीं,तो दोस्त-यारी छोड़ दो।

93


लोगों में करवा दो फूट
सच से ज्यादा बोलो झूठ

सत्ता की कुर्सी के नाम
मैंने लूटा ,तू भी लूट

नेता बनना है आसान
खादी कुर्ता पहनो बूट

महँगा कर दो , पहले दाम
फ़िर दे देना थोड़ी छूट

इसके ,उसके भर दो कान
जाता पल में रिश्ता टूट

ढक ले, अपनी आँखें, नाक
फ़िर भीड़ में जा, मिर्चा कूट।

बस हो अपनी नैय्या पार
दुनियां डूबे जाए डूब

94


हवा के सामने जाकर , मिलाए जो नज़र ढूंढ़ो
अँधेरों में चराग़ों को , जलाने का हुनर ढूंढ़ो

फ़रेबी लोग रहते हैं , लुटेरों की हुक़ूमत है
न कोई अब ज़मीनों पर, सितारों सा नगर ढूंढ़ो

बड़ी लहरें पलट देतीं , सफ़ीने बीच में आकर
अग़र तुमको समन्दर पार जाना है भँवर ढूंढ़ो

फ़रेबी हुस्न की क़ातिल अदाओं में न आना तुम
ज़िगर तक जो मुहब्बत में उतर जाए असर ढूंढ़ो

अग़र परखे नहीं रस्ते ,भटकते ही रहोगे तुम
जो मंज़िल की तरफ़ जाए, कोई ऐसी डगर ढूंढ़ो।


95

हर तरफ़ तनहाइयाँ थी , ख़्वाब आए देर से
हम भी पहुँचे देर से, कुछ तुम भी आए देर से

बोल मीठे बोलकर, उसने हमें लूटा बहुत
इश्क़ की बारीकियाँ ,हम जान पाए देर से

जब कभी भी हम अचानक मुश्किलों में आ गए
गैर नें दामन बचाया, यार आए देर से

बद-नसीबी तुम कहोगे, वाकिया को जानकर
दर्द लेकर फ़िर रहे थे, चोंट खाए देर से

गीत ग़ज़लें हम सुनाते और पहले से तुम्हें
ज़िन्दगी नें ज़िन्दगी पर, ज़ुल्म ढाए देर से।



96

झूठ को सच्चा बनाया ना गया
बोझ ये मुझसे उठाया ना गया

यार के ख़ातिर हुए बर्बाद हम
यार को दुश्मन बनाया ना गया

इश्क़ की यादें मिटाईं ना गईं
ज़ख्म पर मरहम लगाया ना गया

दर्द में जीना बड़ा अच्छा लगा
इसलिए उसको भुलाया ना गया

आँख से नीदें चुराते कैसे हम
आँख से काज़ल चुराया ना गया


97

और इक घाटा सही ,यह काम करके देखिए
नेकियों में ज़िन्दगी नीलाम करके देखिए

नींद ग़र आती नहीं हो , शौहरतों की चाह में
घर किसी मज़दूर के, आराम करके देखिए

ग़र नहीं मिलता सुकूँ तो, दायरों को तोड़ दे
और कुछ दिन खास चीजें, आम करके देखिए

प्रेम की बरसात होगी ,खिल उठेगा ये चमन
नफ़रतों की कोशिशें नाकाम करके देखिए

यदि तुम्हें मालुम नहीं , कीमत चराग़ों की यहाँ
वक़्त थोड़ा तीरगी के, नाम करके देखिए

98



बलाओं नें बना डाली, बुरी हालत फ़ज़ाओ की
नज़र आती नहीं मुझको, खुदाई अब खुदाओं की

वुज़ू करने कई मौसम नदी के पास आते थे
हुआ पानी जरा सा कम दिशा बदली हवाओं की

हुक़ूमत ही करेगी तय कहाँ किसको बरसना है
हमारे शहर में चलती नहीं मर्ज़ी घटाओं की,



99

हाँथ पक्का निशाना नहीं है
तीर तब तक चलाना नहीं है,

देखिये कौन क्या सोचता था
हाल दिल का ज़ताना नही है

ढूंढ लेगा हज़ारों बहाने
फ़र्ज़ जिसको निभाना नहीं है

कम से कम काटिये मत शज़र को
बाग तुमको लगाना नहीं है

दर्द दिल का ग़ज़ल में उतारो
और कोई तराना नहीं है।

100


आंधियाँ पीछे खड़ी हैं सामने तूफान है
हाँ मग़र फ़िर बहुत यह ज़िन्दगी आसान है

सन्सदी कुछ कागजों पर ,ज़िक्र है बरसात का
खेत में सूखा पड़ा है, रो रहा खलियान है

काम है संसार का , कुछ हाँथ है सरकार का
क्यों गरीबों की हमेशा मुश्किलों में जान है

सच घिरा है हादसों में ,नेकियां हैं कैद में
ज़ालिमों को रोकने आता नहीं भगवान है

जाति के मसले कहीं पर मज़हबी झगड़े हुए
आदमी के ज़ुल्म से, अब आदमी हैरान है

नूर ख़ुद पैदा करो, अपनी निग़ाहों के लिए
बढ़ रही है तीरगी ,औ बुझ रहा लोबान है।


101

किसलिए दुश्मनी किसलिए यह लड़ाई
जाति के नाम पर मत लड़ो मेरे भाई

कल को नस्लें हमारी गिरेंगी इसी में
बे-वज़ह खोदते फिर रहे लोग खाई

झूठ को झूठ कहने की हिम्मत दिखाओ
आएगी सामने ख़ुद-ब-ख़ुद फिर सचाई

सिर्फ़ साधन मिलेंगे सुकूँ ना मिलेगा
नाम बदनाम कर देगी काली कमाई

कौम के नाम पर, हो रही है सियासत
मज़हबी हो गए हैं सभी मेरे भाई।


102


लहू अब हमारा बहाओ न साहब
गरीबों को ज्यादा सताओ न साहब

नकाबों से कब तक गुज़ारा करोगे
ये झूठे दिलाशे दिलाओ न साहब

सितम को सितम की नज़र से निहारो
वज़ह मज़हबी हर बनाओ न साहब

सही राह पर ही खज़ाना मिलेगा
वतन बेचकर अब कमाओ न साहब

बड़ी। मुश्किलों से हम खड़े हुए हैं
गिरेंगे हवा में उड़ाओ न साहब

मसाइल बहुत हैं मिटाने को घर में
पड़ोसी के चर्चे सुनाओ न साहब।

103



अश्क़ आँखों में लिए फिरते रहे
आइनो से जब तलक़ डरते रहे

मिल ही जाऐगी उन्हें मंज़िल कभी
रास्तों पर पाँव जो बढ़ते रहे

लिख गये इतिहास सारा मेहनती
लोग बस जीते रहे, मरते रहे

जब गिरे तो राह घर की ना मिली
जो हवा में। रात दिन उड़ते रहे

खोदने वाले बहुत थे भीड़ में
खाइयां कुछ लोग ही भरते रहे।



104

लोग उलझे सवालों, जबाबों में हैं
और ही मामले कुछ हिसाबों में हैं

जबसे चूल्हे का धंधा सियासी हुआ
रोटियां आदमी की अज़ाबों में हैं

ग़र बबूलों में होते ,तो थे लाज़िमी
लाख काटें तुम्हारे गुलाबों में हैं

आदमीयत कहाँ आदमी में रही
नेकियां अब यहाँ बस किताबों में हैं

जाम हैं लब तुम्हारे , नशीली नज़र
शोखियां आपकी कुछ शराबों में हैं

क़ैद है सच घरों में यहाँ बेख़बर
झूठ वाले यहाँ सब नकाबों में हैं।


105

तुम्हें काम करके कमाना नहीं है
मेरे पास कोई खज़ाना नहीं है

यहाँ आदमी मतलबी हो गए सब
रहा नेकियों का ज़माना नहीं है

भटकते हैं रोटी कमाने को दर-दर
गरीबों का कोई ठिकाना नहीं है

सदा फ़ायदा देखकर, दल बदलता
सियासी का कोई घराना नहीं है

कहीं कार-बंगला,लगे भोग छप्पन
घरों में कहीं चार-दाना नहीं है



106


नाव को पतवार का कोई सहारा ना मिला
दर-बदर भटके बहुत लेकिन किनारा ना मिला

ज़िस्म के बाज़ार में कुछ यार थे दिलदार भी
रंग रूप हसीन था पर दिल हमारा ना मिला

झील के मानिंद उन्हें कोई नज़र ही ना मिली
आग में लिपटा हुआ मुझको शरारा ना मिला

नूर के माफ़िक बदलते थे सभी मन्ज़र वहाँ
एक हो किरदार जिसका वो नज़ारा ना मिला

मखमली हो फूल सा ,जो पत्थरों को तोड़ दे
आप जैसा आइना हमको दुबारा ना मिला।

107


साथ सबका दिया यह बताते रहे
बस ग़रीबों को थोड़ा सताते रहे

कर्ज़ माफ़ी लुटेरों की होती रही
अन्नदाता तो फाँसी लगाते रहे

आदमी को सियासी बनाया गया
और नफ़रत फ़रेबी फ़िलाते रहे

मैल मन में भरा मज़हबी रातदिन
ज़िस्म गंगा में डुबकी लगाते रहे

मौलवी पादरी कुछ पुजारी यहाँ
धर्म के नाम पर खुद कमाते रहे

आदमी को न समझा कभी आदमी
हम छुआछूत सदियों चलाते रहे।

108


न कोई जुबां का सहारा मिलेगा
नज़र को नज़र से इशारा मिलेगा,

समझ सोंच कर फ़ैसले अब करो तुम
गया वक़्त फ़िर ना दुबारा मिलेगा,

सभी कश्तियाँ बिक चुकीं हैं नदी में
अग़र दाम दोगे किनारा मिलेगा,

भरोसे हुक़ूमत के बैठे रहे जो
ज़मीं ना किसी को सितारा मिलेगा,

हुनर साथ लेकर बढ़ो रास्तों पर
तुम्हें ना सफ़र में सहारा मिलेगा

हवाएं सितम की, जहाँ तेज होगी
वहीं शेर तुमको हमारा मिलेगा।


109



फ़र्क कुछ पड़ता नहीं इस पार अब उस पार का
साथ छूटा हो कि जैसे नाव से पतवार का

हैशियत का जलजला सब देखते रिश्तों में अब
हो गया है ,इश्क़ यारों फ़लसफ़ा बेकार का

दुश्मनों को रात दिन देते रहे , हम गालियाँ
हादसों में हाँथ निकला ,मुल्क़ की सरकार का

अब नज़र आतीं नहीं कुछ नेकियां इंसान में
आदमी होने लगा , वहशी बहुत संसार का

उम्र में छोटा ,बड़ो का ना करे सम्मान अब
बे-अदब होने लगा है दौर यह बाजार का।


110



ख़ाक होकर इस ज़मीं की आसमां हो जाएंगे
क्या पता था इस तरह हम राएगां हो जाएंगे

कौन जाने याद आख़िर किसको कितनी आएगी
फ़ासले जब क़ुर्बतों के दरमियां हो जाएंगे

ग़र नहीं देखा उन्हें नज़दीक़ से दो चार दिन
ख़्वाब सारे आँख में जलकर धुआं हो जाएंगे

और क्या होगा अग़र तुम दूर हमसें जाओगे
इश्क़ में उजड़ी हुई इक दास्तां हो जाएंगे

रास्तों पर जो अकेले, चल रहे हैं बेख़बर
मंज़िलों तक चलते - चलते कारवां हो जाएंगे।

111


के नाज़ों-अदाएं करीना न आया
उन्हीं हुस्नवालों को जीना न आया,

हुनर काम आया, भँवर में हमारा
हमें पार लेकर ,सफ़ीना न आया,

विराने में दिल नें गुज़ारी हैं सदियां
जहाँ कोई सावन, महीना न आया,

कड़ी धूप में ,तन नहाया है अपना
तुम्हें उम्रभर तो पसीना न आया,

ख़ुदी- बेख़ुदी में ,कटी उम्र तनहा
कोई दिल में अपने रईना न आया।

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