शनिवार, 31 अक्टूबर 2015



खुद को तौलता हूँ


 कभी  धूप  मे खामोश रहा तो कभी छांव मे खौलता हूँ
इस शहर के पैमाने में मैं रोज़ ख़ुद को तौलता हूँ।

 मदहोश चादनी रात  में कभी बेवजह की बात में
बेशुमार खुद मे डूबकर कभी बेवजह  बोलता हूँ।

कभी आखो के आस में तो कभी भूख के अहसास में
इस दर्द-ए-दिल के ख़ातिर ज़हर जिया में घोलता हूँ।

इस शहर के पैमाने में मैं रोज़ खुद को तौलता  हूँ।


- वैभव बेख़बर

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