शनिवार, 31 अक्टूबर 2015

आखों मे आश्कों को.... भरा रहने दो
याद उनकी दिल मे...... जरा रहने दो
अब दुआ दबा दया ....  ना करो  यारो
मुहब्बत का ज़ख्म है....  हरा  रहने दो                ( कवि वैभव बेखबर)






पड़ लेता हू चहरों को   ...किताबों की तरह
हमे उसके इश्क ने इतना काबिल बना दिया ,    
 ।




गर तुझे जाना है तो जा  ।   ......... कल कोई और आएगा इस बस्ती मे ।



      कवि वैभव बेखबर                 KAVI VAIBHAV BEKHABAR

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