खुद को तौलता हूँ
कभी धूप मे खामोश रहा तो कभी छांव मे खौलता हूँ
इस शहर के पैमाने में मैं रोज़ ख़ुद को तौलता हूँ।
मदहोश चादनी रात में कभी बेवजह की बात में
बेशुमार खुद मे डूबकर कभी बेवजह बोलता हूँ।
कभी आखो के आस में तो कभी भूख के अहसास में
इस दर्द-ए-दिल के ख़ातिर ज़हर जिया में घोलता हूँ।
इस शहर के पैमाने में मैं रोज़ खुद को तौलता हूँ।
- वैभव बेख़बर