[11:37 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: 122 122 122 122
वैभव बेख़बर
ज़मीं से, गगन तक, है होना ,उसी का
है जो भी, यहाँ कोना-कोना उसी का
खिलाड़ी , भी है, हर खिलौना उसी का
ये हीरे, ये मोती, ये सोना उसी का
हँसी,चार दिन की, ख़ुशी चार दिन की
नयन रो रहे बस , है रोना उसी का
चले जायगें, वक़्त अपना, बिताकर
ये बिस्तर, ये चादर, बिछौना उसी का
अमीरी , ग़रीबी, यहां हर तमाशा
नज़र देखतीं, सब दिखौना उसी का।
वैभव बेख़बर
[11:37 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: 15/07/2019 वैभव बेख़बर
कब कैसे फ़सायें हमें उलझनों में
ये बात चलती रहती है दुश्मनों में
ग़ुरूर करने वाले टूट जाते हैं यहां
शज़र जो झुकते नहीं आंधियों में
बाज़ार में सिक्का, बोले उसी का
पास हुनर है जिसके बाज़ुओं में
धुँधलायीं आंखे,चेहरा झुलस गया
जाने कितनी आग थी आसुओं में
पगलाये रहते हैं कुछ हम लोग ही
कुछ खास नहीं होता लड़कियों में।
[11:37 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
आये जबसे नफ़रतों के बाज़ार वाले
चले गए दिन प्यार की बहार वाले
सदा सत्ता का ही गुणगान करते हैं
लगता सब बिक गए समाचार वाले
सरकारी दल्लों ने,रिश्व़त के नाम पे
यहां जाने कितने गरीब मार डाले
जाति-धर्म की गन्दी,ऊंच नीच यहां
जल्दही लायेगी दिन नरसंहार वाले
बेख़बर तुम भी बेचते ज़मीर अपना
हो गए होते, गाड़ी,बंगला कार वाले
[11:37 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: 122 122 122 122
वैभव बेख़बर
बहुत दूर तक दिख रही है उदासी
ये दुनियां नज़र,आ रही है ख़ुदा सी
हमीं ने ख़बर दी ,उसे लूट की,पर
वही ले रहा है, हमारी तलाशी
हुनर खो गया दीद सीरत करे जो
ज़माना ये सारा हुआ है लिबासी
चले आइये, बारिशों की तरह अब
हवा में,जलन है ज़मीं है ये प्यासी
खफ़ा हो गए,क्यों ज़ुदा हो गए तुम
हमें ज़िन्दगी, अब लगे,बे-वफ़ा सी।
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
फ़ायलुन फ़ायलुन फ़ायलुन फ़ायलुन
212 212 212 212
दिल लगाकर चले ,सर उठाकर चले
हर नज़र से नज़र हम मिलाकर चले
देख तो लीजिये हसरतों का सफ़र
आग दिल में कहां तुम लगाकर चले
रातभर जागते याद कर हम जिन्हें
ख़्वाब भी वो हमारे चुकाकर चले
रोक भी ना सके, हम उन्हें चाहकर
हाँथ से हाँथ जब वो छुड़ाकर चले
पूछ हमनें लिया, हाल जब वो मिले
शायरी ही हमारी सुनाकर चले।
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
सफ़र में सितम बहुत उठाना पड़ेगा
मन्ज़िल दूर सही ,मगर जाना पड़ेगा
उदास होने के मौसम तो आते रहेंगे
माहौल मुस्कराहट का बनाना पड़ेगा
यहां सौदागर किसी के घर नहीं जाते
हुनर को बाज़ार तक ले जाना पड़ेगा
सच की गवाही ,एक दिन वक़्त देगा
फिर झूठ को तो सामने आना पड़ेगा
गर आदमी समझने लगा आदमियत
मज़हबी दीवारों को गिराना पड़ेगा
वहीं किसी से मेरा पता पूछ लेना
इसी रास्ते में आगे मैखाना पड़ेगा
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
तीरंदाज़ी तेरी कमाल है मगर याद रखना
ये परिन्दें भी रखते हैं हुनर याद रखना
ज़ुल्म सहकर जी गए,फ़क़ीर थे हम लोग
आना वाला है आपका नम्बर याद रखना
ग़ुरूर ,दीमक है,ये वज़ूद ही खा जायेगा
यकीं न हो तो,रावण का घर याद रखना
तेरी कश्तियों के हुनर पे,कोई शक नहीं
मगर कहाँ है समन्दर में,भँवर याद रखना
कोई मुक़ाम हसीन सा पाकर भी बेख़बर
गर्दिश में जो गुज़रा, सफ़र याद रखना।
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वज़्न= 122 122 1222 2212
वैभव बेख़बर
मुहब्बत में हद से गुज़र जाना अच्छा नहीं
ख़मोश रहकर भी, बिखर जाना अच्छा नहीं
कहीं अहमियत खो न जाये इस किरदार की
ज़ियादा अदाओं के घर जाना अच्छा नहीं
ज़रूरी है कुछ दाग़ दामन पर आएं नज़र
जहां की नज़र में सँवर जाना अच्छा नहीं
ये मुमकिन हो सकता कोई तूफ़ां आये यहां
अचानक हवा का ठहर जाना अच्छा नहीं
कभी सामने जाकर किया कर टकरार भी
मुसीबत को देख कर डर जाना अच्छा नहीं
[11:39 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
वज़्न= 212 22 12 212 22 12
भूख, महँगाई , ग़रीबी कहाँ मुद्दा हुआ
मज़हबी मसलों में है आदमी उलझा हुआ
नेकियों की राह पर आदमी चलता नहीं
मतलबी ख्यालों में हर शख़्स है बहका हुआ
देखता हूँ मैं यहाँ,आएदिन दिन अख़बार में
राम औ अल्लाह के नाम पर दंगा हुआ
लोग अब करने लगे हैं ,सियासत भूख पर
दौर है बदला हुआ, वक़्त है बदला हुआ
खोलता था, जो पुलिन्दा, सियासी ज़ुल्म का
बेख़बर मालुम करो, आदमी का क्या हुआ।
Written by वैभव बेख़बर
वैभव बेख़बर
ज़मीं से, गगन तक, है होना ,उसी का
है जो भी, यहाँ कोना-कोना उसी का
खिलाड़ी , भी है, हर खिलौना उसी का
ये हीरे, ये मोती, ये सोना उसी का
हँसी,चार दिन की, ख़ुशी चार दिन की
नयन रो रहे बस , है रोना उसी का
चले जायगें, वक़्त अपना, बिताकर
ये बिस्तर, ये चादर, बिछौना उसी का
अमीरी , ग़रीबी, यहां हर तमाशा
नज़र देखतीं, सब दिखौना उसी का।
वैभव बेख़बर
[11:37 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: 15/07/2019 वैभव बेख़बर
कब कैसे फ़सायें हमें उलझनों में
ये बात चलती रहती है दुश्मनों में
ग़ुरूर करने वाले टूट जाते हैं यहां
शज़र जो झुकते नहीं आंधियों में
बाज़ार में सिक्का, बोले उसी का
पास हुनर है जिसके बाज़ुओं में
धुँधलायीं आंखे,चेहरा झुलस गया
जाने कितनी आग थी आसुओं में
पगलाये रहते हैं कुछ हम लोग ही
कुछ खास नहीं होता लड़कियों में।
[11:37 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
आये जबसे नफ़रतों के बाज़ार वाले
चले गए दिन प्यार की बहार वाले
सदा सत्ता का ही गुणगान करते हैं
लगता सब बिक गए समाचार वाले
सरकारी दल्लों ने,रिश्व़त के नाम पे
यहां जाने कितने गरीब मार डाले
जाति-धर्म की गन्दी,ऊंच नीच यहां
जल्दही लायेगी दिन नरसंहार वाले
बेख़बर तुम भी बेचते ज़मीर अपना
हो गए होते, गाड़ी,बंगला कार वाले
[11:37 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: 122 122 122 122
वैभव बेख़बर
बहुत दूर तक दिख रही है उदासी
ये दुनियां नज़र,आ रही है ख़ुदा सी
हमीं ने ख़बर दी ,उसे लूट की,पर
वही ले रहा है, हमारी तलाशी
हुनर खो गया दीद सीरत करे जो
ज़माना ये सारा हुआ है लिबासी
चले आइये, बारिशों की तरह अब
हवा में,जलन है ज़मीं है ये प्यासी
खफ़ा हो गए,क्यों ज़ुदा हो गए तुम
हमें ज़िन्दगी, अब लगे,बे-वफ़ा सी।
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
फ़ायलुन फ़ायलुन फ़ायलुन फ़ायलुन
212 212 212 212
दिल लगाकर चले ,सर उठाकर चले
हर नज़र से नज़र हम मिलाकर चले
देख तो लीजिये हसरतों का सफ़र
आग दिल में कहां तुम लगाकर चले
रातभर जागते याद कर हम जिन्हें
ख़्वाब भी वो हमारे चुकाकर चले
रोक भी ना सके, हम उन्हें चाहकर
हाँथ से हाँथ जब वो छुड़ाकर चले
पूछ हमनें लिया, हाल जब वो मिले
शायरी ही हमारी सुनाकर चले।
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
सफ़र में सितम बहुत उठाना पड़ेगा
मन्ज़िल दूर सही ,मगर जाना पड़ेगा
उदास होने के मौसम तो आते रहेंगे
माहौल मुस्कराहट का बनाना पड़ेगा
यहां सौदागर किसी के घर नहीं जाते
हुनर को बाज़ार तक ले जाना पड़ेगा
सच की गवाही ,एक दिन वक़्त देगा
फिर झूठ को तो सामने आना पड़ेगा
गर आदमी समझने लगा आदमियत
मज़हबी दीवारों को गिराना पड़ेगा
वहीं किसी से मेरा पता पूछ लेना
इसी रास्ते में आगे मैखाना पड़ेगा
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
तीरंदाज़ी तेरी कमाल है मगर याद रखना
ये परिन्दें भी रखते हैं हुनर याद रखना
ज़ुल्म सहकर जी गए,फ़क़ीर थे हम लोग
आना वाला है आपका नम्बर याद रखना
ग़ुरूर ,दीमक है,ये वज़ूद ही खा जायेगा
यकीं न हो तो,रावण का घर याद रखना
तेरी कश्तियों के हुनर पे,कोई शक नहीं
मगर कहाँ है समन्दर में,भँवर याद रखना
कोई मुक़ाम हसीन सा पाकर भी बेख़बर
गर्दिश में जो गुज़रा, सफ़र याद रखना।
[11:38 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वज़्न= 122 122 1222 2212
वैभव बेख़बर
मुहब्बत में हद से गुज़र जाना अच्छा नहीं
ख़मोश रहकर भी, बिखर जाना अच्छा नहीं
कहीं अहमियत खो न जाये इस किरदार की
ज़ियादा अदाओं के घर जाना अच्छा नहीं
ज़रूरी है कुछ दाग़ दामन पर आएं नज़र
जहां की नज़र में सँवर जाना अच्छा नहीं
ये मुमकिन हो सकता कोई तूफ़ां आये यहां
अचानक हवा का ठहर जाना अच्छा नहीं
कभी सामने जाकर किया कर टकरार भी
मुसीबत को देख कर डर जाना अच्छा नहीं
[11:39 AM, 7/18/2019] वैभव बेख़बर: वैभव बेख़बर
वज़्न= 212 22 12 212 22 12
भूख, महँगाई , ग़रीबी कहाँ मुद्दा हुआ
मज़हबी मसलों में है आदमी उलझा हुआ
नेकियों की राह पर आदमी चलता नहीं
मतलबी ख्यालों में हर शख़्स है बहका हुआ
देखता हूँ मैं यहाँ,आएदिन दिन अख़बार में
राम औ अल्लाह के नाम पर दंगा हुआ
लोग अब करने लगे हैं ,सियासत भूख पर
दौर है बदला हुआ, वक़्त है बदला हुआ
खोलता था, जो पुलिन्दा, सियासी ज़ुल्म का
बेख़बर मालुम करो, आदमी का क्या हुआ।
Written by वैभव बेख़बर