अंदाज-ए-बयां...एक दीवाना कलम का ...वैभव बेख़बर

ग़ज़ल एक ही बहर और वज़न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शेर को मतला कहते हैं। ग़ज़ल के अंतिम शेर को मक़्ता कहते हैं। मक़्ते में सामान्यतः शायर अपना नाम रखता है/ग़ज़ल के शेर में तुकांत शब्दों को क़ाफ़िया कहा जाता है और शेरों में दोहराए जाने वाले शब्दों को रदीफ़ कहा जाता है। शेर की पंक्ति को मिस्रा कहा जाता है। मतले के दोनों मिस्रों में काफ़िया आता है और बाद के शेरों की दूसरी पंक्ति में काफ़िया आता है। रदीफ़ हमेशा काफ़िये के बाद आता है।

शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017


प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 6:10 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

गुरुवार, 27 अप्रैल 2017


प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 4:41 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

बुधवार, 26 अप्रैल 2017


प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 5:43 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 5:20 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

मंगलवार, 25 अप्रैल 2017


प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 6:24 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 6:08 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

गुरुवार, 13 अप्रैल 2017


प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 6:15 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 6:00 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

kavi vaibhav katiyar,

कोई दौर ज़िंदगी   का सदा ना चला
आदमी ही चला  कभी रास्ता ना चला
आज वही दे  रहा  है दूसरों को खबर
जो  खुद को  कभी  पता  ना  चला,  
प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 3:05 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 3:00 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 2:43 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017


प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 5:19 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 5:00 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

बुधवार, 5 अप्रैल 2017

वैभव बेखबर /



उड़ानों  से ज्यादाकभी  उड़ा नही करते
ताल्लुक हर किसी से  जुड़ा नही करते
तोड़ने  से पहले  सोच  लेना  एक  बार
टूटे हुये  दिल   कभी  जुड़ा  नही करते, 
प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 4:48 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 4:46 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 4:27 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें

सोमवार, 3 अप्रैल 2017


प्रस्तुतकर्ता http://वैभव बेख़बर.blogspot.com/ पर 3:06 am कोई टिप्पणी नहीं:
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें! X पर शेयर करेंFacebook पर शेयर करेंPinterest पर शेयर करें
नई पोस्ट पुराने पोस्ट मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें संदेश (Atom)

ब्लॉग आर्काइव

  • ►  2015 (3)
    • ►  अक्टू॰ (2)
    • ►  नव॰ (1)
  • ►  2016 (49)
    • ►  जन॰ (16)
    • ►  फ़र॰ (5)
    • ►  अप्रैल (1)
    • ►  मई (1)
    • ►  जुल॰ (16)
    • ►  सित॰ (1)
    • ►  अक्टू॰ (4)
    • ►  दिस॰ (5)
  • ▼  2017 (116)
    • ►  जन॰ (10)
    • ►  फ़र॰ (26)
    • ►  मार्च (53)
    • ▼  अप्रैल (17)
      • वैभव बेखबर / उड़ानों  से ज्यादाकभी  उड़ा नही करत...
      • kavi vaibhav katiyar, कोई दौर ज़िंदगी   का सदा ना...
    • ►  मई (6)
    • ►  जुल॰ (3)
    • ►  सित॰ (1)
  • ►  2018 (11)
    • ►  जन॰ (1)
    • ►  अप्रैल (1)
    • ►  जुल॰ (3)
    • ►  अग॰ (2)
    • ►  सित॰ (2)
    • ►  अक्टू॰ (1)
    • ►  नव॰ (1)
  • ►  2019 (6)
    • ►  फ़र॰ (1)
    • ►  मार्च (1)
    • ►  अप्रैल (1)
    • ►  जुल॰ (2)
    • ►  अग॰ (1)
  • ►  2020 (1)
    • ►  अप्रैल (1)
  • ►  2024 (1)
    • ►  फ़र॰ (1)
vaibhav katiyar वैभव बेख़बर 9455062093. वाटरमार्क थीम. Blogger द्वारा संचालित.