रविवार, 16 जुलाई 2017

***** कविता ******
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चमकने के लिए  उजालों  की
 तरफ
 कुछ ख़्वाहिशें लेकर
चल पड़ा था  मै

दोस्त प्यार यार सबका
अपना कारोबार  था
रोशनी के हर मुकाम पर
एक खूबसूरत बाजार था

सुकून मिला फिर
आकर अधेंरे मे ।  जैसे

घर छोड़कर    एक घर ढूंढ
रहा था मै ।।।

,,,@@@@( वैभव बेखबर )@@@,,,,
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गुरुवार, 23 मार्च 2017






शुक्रवार, 17 मार्च 2017

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                गजल
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ये दिल जिस्मों जाँ सब निसार  करते
वो चाहता तो हम भी उसे प्यार करते ,

उसने अच्छा ही किया कोई वादा ना करके
वरना बेवजह हम उम्रभर इंतजार करते


आपकी कश्ती ही जब हमे डुबोने लगी
तो किसके सहारे हम दरिया पार करते

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गुरुवार, 16 मार्च 2017