रविवार, 25 फ़रवरी 2024

लघु कथा (वैभव बेख़बर)

 ढेर सारी जमीन थी जिसके पास ,वही गाँव का एक जमींदार था, उसने 8-10 मुस्तण्डे पाल रख्खे थे, ज़मीदार पूरे गाँव पे रौब जमाता था, ग़रीब, मज़दूर किसानों की  जमीनें हड़प ली थी, सूद-खोरी करना, चीजें गिरवी रखना, और उन पर ब्याज़ की मोटी रक़म ऐंठना, लोग सूद ही चुकाते चुकाते मर जाएं

मूल रक़म की बात ही छोड़ दो, बिल्कुल प्रेमचंद के क़िस्सों में पाये जाने वाले ज़मीदारों की तरह,

वही गाँव का  मुखिया/प्रधान  था, पहले उसके पूर्वज रहते थे,   

उस ज़मीदार ने  गाँव वालों का  खूब शोषण किया, गरीब मज़दूर, किसानों को खूब सताया, खूब लूट मचाई,


हाल ही में मुझे गुप्त सूत्रों से पता चला है, वह ज़मीदार इस बार सिर्फ़ गाँव की नहीं, पूरे क्षेत्र, पूरे समाज, सारे देश की सेवा करने के उद्देश्य से आने वाले  विधानसभा/लोकसभा के चुनाव में एक उम्मीदवार के तौर पर  पर्चा भरेगा,

क्योंकि उसने गली-मोहल्ले, चौराहों, पर  बैनर लगवा रखें हैं

आपका अपना कर्मठ मेहनती ईमानदार प्रत्याशी............!

वैभव बेख़बर