रविवार, 16 जुलाई 2017

***** कविता ******
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चमकने के लिए  उजालों  की
 तरफ
 कुछ ख़्वाहिशें लेकर
चल पड़ा था  मै

दोस्त प्यार यार सबका
अपना कारोबार  था
रोशनी के हर मुकाम पर
एक खूबसूरत बाजार था

सुकून मिला फिर
आकर अधेंरे मे ।  जैसे

घर छोड़कर    एक घर ढूंढ
रहा था मै ।।।

,,,@@@@( वैभव बेखबर )@@@,,,,
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